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राजस्थान के लोकसन्त व सम्प्रदाय REET | PATWAR
Published on June 13, 2021 by Just Prep Raj |राजस्थान अनेक साधु- सन्तो की जन्म भूमि व तपो भूमि रही है। अत: इन सन्तो ने अनेक सम्प्रदाय चलाऐ तथा साथ ही साथ समाज सुधार के भी अनेक कार्य किऐ। उक्त शीषर्क महत्वपूर्ण बिन्दू है अत: अभ्यर्थि इन सभी तथ्यों को कण्ठस्थ करले।
Last Updated on March 15, 2023 by Just Prep Raj
- संत जाम्भोजी का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को गाँव पीपासर जिला नागौर मे हुआ।
- इनकी समाधी गाँव मुकाम जिला बीकानेर मे है।
- गुरू जम्भेश्वर ने विश्नोई सम्प्रदाय चलाया।
- विश्नोई सम्प्रदाय मे खेजड़ी पवित्र वृक्ष व हिरण व पवित्र पशु माना जाता है।
- इस सम्प्रदाय मे हरे पेड काटने पर रोक है तथा साथ ही पशु हत्या पर भी पाबन्दी है।
- गुरू जम्भेश्वर जी को पर्यावरण वैज्ञानिक संत, जांगल प्रदेश के सन्त कहा जाता है।
- गुरू जम्भेश्वर को समराथल धोरा [बीकानेर] पर ज्ञान प्राप्ति हुई।
- माता – हंसा देवी, पिता: लोहट जी ।
- प्रमुख ग्रन्थ – जम्ब सागर : सबसे पवित्र।
- जम्भ संहिता / जम्भ गीता विश्नोई धर्म प्रकाश जम्भ वाणी / जम्भ वेद
- संत जसनाथ जी ने सिद्ध / जसनाथी सम्प्रदाय को जन्म दिया।
- माता – रूपा दे , पिता – हम्मीर ।
- गोरख मालिया नामक जगह पर 12 वर्ष कठोर तपस्या की।
- प्रमुख पीठ – कतरियासर [बीकानेर]।
- जसनाथी लोग जाल वृक्ष, मोर पंख व ऊन के धागे को पवित्र मानते है।
- संत जसनाथ जी ने निर्गुण निराकार ब्रह्मा की उपासना पर बल दिया।
- संत जसनाथ जी अपने मां – बाप को एक तालाब मे तैरते हुऐ मिले।
- मात्र 24 वर्ष की उम्र मे समाधिस्थ हो गऐ।
- जसनाथी सम्प्रदाय मे अगिंरो पर नृत्य किया जाता है।
- प्रमुख ग्रंथ – 1.कोण्डा, 2.सिम्भूदड़ा, 3.सिद्ध जी रो सिर लोको।
- सिकंदर लोदी ने कतरियासर मे जसनाथी को भूमि प्रदान की।
- बीकानेर के शासक राव लुणकरण व सिकन्दर लोदी तथा गुरू जाम्भोजी व जसनाथी जी समकालीन थे।
- संत पीपा जी का मूल नाम प्रताप सिंह खिंची था।
- पिता – कड़ावा राव खीची; माता – लक्ष्मीवती।
- राजस्थान मे भक्ति आन्दोलन की अलख जगाने वाले संत।
- ये निर्गुण भक्ति मे विश्वास रखते थे।
- संत रैदास के गुरू का नाम रामानन्द था।
- कबीर जी ने रैदास को सन्तो का सन्त कहा।
- मीरा बाई के गुरू रैदास थे।
- रैदास जी की वाणियां रैदास की परची कहलाती है।
- रैदास जातिवाद व बह्ट आडम्बर के कट्टर विरोधी थे।
- रैदास जी की छतरी चितौडगढ के कुम्भश्याम मंदिर के एक कोने मे है।
- राजस्थान का नृसिंह कवि दुर्लभ जी कहा जाता है।
- मीरा बाई के बचपन का नाम पेमल [कसबू बाई] था।
- पिता – रतन सिंह – बाजौली के जागीरदार।
- माता – वीर राज कुवंर
- दादा – राव दूदा [मेड़ता के ठाकुर]।
- जन्मस्थान : गॉंव कुड़ली तहसील जैतारण [पाली]
- परवरिश – राव दूदा ने की।
- विवाह : राणा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र राणा भोजराज के साथ हुआ।
- बचपन के गुरू – गजाधर
- गुरू गजाधर को राणा सांगा ने मांडलपुर मे जांगीर दी।
- मीरा बाई भगवान कृष्ण की अनन्य भक्त थी।
- भक्ति – वह सगुण भक्ति मे विश्वास करती थी।
- मीरा ने पति की मृत्यू के बाद ससुराल छोड दिया।
- वृन्दावन चली गई व वहाँ सन्त रैदास जी को अपना गुरू बनाया।
- किवदंति है कि वह अन्त मे द्वारिका जी चली गई व वहाँ श्री रणछोड दास जी की मूर्ति मे समा गई।
- प्रमुख ग्रन्थ: 1.राग गोविन्द, 2. रूकमणि मंगल, 3. मीराबाई की पदावली, 4. गीत गोविन्द की टीका, 5.नरसी जी रो मायरो इत्यादि।
- सन्त दादूदयाल का जन्म-स्थान : अहमदाबाद।
- बचपन का नाम : महाबली।
- गुरू – बुडढनजी।
- उपनाम: राजस्थान का कबीर।
- संत दादूदयाल जी ने 11 वर्ष की उम्र मे गृह त्याग दिया था। 19 वर्ष की उम्र मे राजस्थान आऐ। सांभर मे अपना प्रथम उपदेश दिया।
- 1575 मे सांभर मे दादूजी ने दादू पंथ / ब्रह्म सम्प्रदाय की स्थापना की।
- दादू सम्प्रदाय मे सत्संग स्थल को अलख दरीबा कहा जाता है।
- मृत्यूपरान्त दादू जी को जयपुर स्थित भैराणा की पहाड़ियों मे जिस गुफा के सामने रखा गया उसे दादू खोल कहा जाता है।
- दादू पंथ की मुख्य पीठ – नरैना [जयपुर]।
- प्रमुख ग्रन्थ: 1.दादू रा दूहा 2.दादूरी वाणी, 3.दादू हरड़े वाणी, 4.अंग वधू दादू
- भाषा – दूंढाड़ी
- 1585 ई॰ मे दादू दयाल जी ने सम्राट अकबर से भैट कर अपने विचारों से उसे प्रभावित किया।
- दादू जी के कुल 152 शिष्य थे जिनमे से 100 शिष्य वितरागी हुऐ तथा 52 शिष्यों ने धूम धूमकर दादू द्वारों की स्थापना की दादू पंथ मे 52 स्तम्भ कहलाते है।
- दादूदयाल जी के उत्तराधिकारी उनके पुत्र गरीबदास बने।
- दादू दयाल जी के प्रमुख शिष्य:
- दादूदयाल जी की मृत्यू के उपरांत दादू पंथ 5 भागो मे विभक्त हो गया –
- वेणेश्वर धाम मेले मे खण्डित शिवलिंग की पूजा होती है।
- मीराबाई को राजस्थान की राधा, भी कहा जाता है। कर्नल टॉड ने मीरा को ‘देवताओं की पत्नि’ कहा।
- तुलसीदास के आग्रह पर मीरा मेवाड़ छोडकर वृदावन चली गई।
- मीरा बाई के मंदिर – 1.आमेर दुर्ग, 2.चित्तौड़गढ, 3.चारभुजा, नागौर दादुगढ दुर्ग।
- संत चरणदास जी – निर्गुण व सगुण भक्ति मे विश्वास। जन्म : गाँव डेहरा [अलवर]।
- समाधिस्थल : दिल्ली [मुख्य पीठ]।
- गुरू: शुक्रदेव।
- इनके शिष्य [अनुयायी] हमेशा पीला वस्त धारण थे।
- इन्होने नादिरशाह के आक्रमण की भविष्यवाणी की थी।
- प्रमुख ग्रन्थ: 1.भक्ति सागर, 2.ज्ञान स्वरोदय, 3. ब्रह्मा चरित्र, 4.ब्रह्मा ज्ञान सागर