Just Prep Raj 0 Comments

राजस्थान के प्राचीन सिक्के REET | PATWAR

Published on June 2, 2021 by Just Prep Raj |
Last Updated on March 15, 2023 by Just Prep Raj
प्रतियोगी परीक्षाओं मे अकसर प्राचीन सिक्कों पर अनेक प्रश्न पुछे जाते है। राजस्थान के रजवाड़ो मे भी कई प्रकार के सिक्के जारी हुऐ। परीक्षार्थियों से यह अपेक्षा की जाति है कि वे दिऐ गऐ सभी प्रश्नों पर गहराई से ध्यान दे एवं उन्हे आचमन करे।
  • भारतीय सिक्कों का सचित्र क्रमबद्ध विवेचन “ बिबलियोग्राफी ऑफ इण्डिया कोइन्स ” मे दिया गया है।
  • कुषाणों के समय सर्वाधिक शुद्ध सोने के सिक्कें चलन मे थे।
  • कुषाणवंशी शासक विम कदफिसस ने भारत मे सबसे पहले सोने के सिक्के चलाऐ।
  • सिक्कों का अध्ययन अगें्रजी मे नुमिस्मेटिक्स कहलाता है।
  • सबसे ज्यादा स्वर्ण सिक्के गुप्त काल मे जारी हुऐ थे।
  • ब्रिटिश शासन के दौरान राजस्थान मे सर्वाधिक प्राचीन चाँदी का सिक्का `कलदार` था।
  • शेरशाह सूरी ने 180 ग्रेन का सिक्का चलाया जिसे  `रूपया` नाम दिया गया था। यह सिक्का आज भी प्रचलित है।
  • राजस्थान के राजवंशो मे सर्वप्रथम `चैहानों` ने सिक्के जारी किऐ [विशोषक] – तांबे का सिक्का, रूपक – चाँदी का सिक्का, दीनार [स्वर्ण सिक्का]।
  • सीकर जिले के गाँव गुरारा से 2744 पंचमार्क सिक्के प्राप्त हुऐ है। इनमे से 61 सिक्को पर  `थ्री मैन`  अकिंत है।
  • डा॰ केदारनाथ पुरी के नेतृत्व मे रेड नामक स्थल पर उत्खनन हुआ जिसमे 3075 चाँदी के पंचमार्क सिक्के प्राप्त हुऐ। इनको पण या धरण कहा जाता था। विदित रहे रैड टोंक जिले मे है।
  • नगरी [चित्तौडग़ढ़], नोह [भरतपुर], विराटनगर [जयपुर], जसन्दपुरा [जयपुर], गुरारा [सीकर], से उत्खनन मे पंचमाक्र्क सिक्के प्राप्त हुऐ।
  • भारतीय इतिहास मे चैथी शताब्दी ई॰ पूर्व `आहत सिक्कों` का प्रचलन हुआ।
  • 1835 ई॰मे इन सिक्कों को पंचमार्क नाम दिया था जेम्स प्रिंसेप ने।
  • ठप्पा मारकर बनाऐ जाने के कारण ये आहत सिक्के कहलाऐ।
  • आहत सिक्कों पर कई प्रकार की आकृतियां बनी होती थी यथा मछली, सांड, पेड, हाथी, अर्द्ध चन्द्र।
  • जयपुर राज्य मे मुगल काल मे मुगली सिक्के चलते थे।
  • जयपुर के सिक्के पूरे भारत वर्ष मे अपनी शुद्धता के लिऐ प्रसिद्ध थे।
  • महाराजा माधोसिंह व रामसिंह ने स्वर्ण सिक्का कहा जाता था।
  • माधोसिंह द्वारा जारी रूपये को हाली सिक्का कहा जाता था।
  • जयपुर मे तांबे के सिक्कों को झाड़ शाही पैसा कहा जाता था जिनका चलन कच्छवाह वंश द्वारा किया गया था।
  • खेतड़ी की टकसाल मे चाँदी व तांबे के सिक्के बनते थे। इस टकसाल की स्थापना सवाई जयसिंह द्धितीय द्वारा सन 1728 ई॰मे की गई।
  • राजपूताने मे जयपुर पहला राज्य था जिसे मुगलों ने अपनी स्वतन्त्र टकसाल बनाने की अनुमति दी।
  • आज भी जयपुर का सिरहड्योदी बाजार  `चाँदी की टकसाल` के नाम से जाना जाता है।
  • मुगल काल मे मेवाड़ मे प्रचलित सिक्कों को एलची कहा जाता था।
  • जोधपुर मे बनने वाले सिक्कों को `मोहर` कहा जाता था।
  • सोजत की टकसाल मे निर्मित सिक्कों को `ललूलिया` कहा जाता था।
  • अलवर अजमेर व बैराठ मे भी टकसाल हुआ करती थी।
  • महाराजा विजय सिंह द्वारा सिक्का जारी करने के कारण यह सिक्का विजयशाही कहलाया।
  • यह सिक्का मारवाड़ मे सर्वाधिक लोकप्रिय था।
  • भरतपुर के बयाना से गुप्तकालीन सिक्के मिले है जौ 1800 ई॰ के आस पास के है। इनमे सर्वाधिक चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के समय के है।
  • राजस्थान के उत्तरी व पश्चिमी क्षैत्र से यौद्धेय सिक्के प्राप्त हुऐ है जिन पर नन्दी की आकृति अंकित है।
  • किशनगढ मे शाहआलम नाम का सिक्का चलन मे था।
  • बैराठ [विराटनगर ], से पंचमार्क मुद्रा तथा यूनानी शासकों की प्राप्त हुई है।
  • जालौर, सांभर, नाडोल के चैहान शासकों ने कई तांबे व चाँदी के सिक्के चलाऐ जो द्रम्म, विशोपक, रूपक, दीनार इत्यादि नामों से जाने जाते थे।
  • मुगल काल मे जैसलमेर मे मुहम्मदशाह, सिक्कों का चलन था। जैसलमेर मे तांबो का सिक्का डोडिया कहलाता था।
  • गुप्त काल मे स्वर्ण मुर्दाओं को दीनार कहा जाता था।
  • सालिमशाही सिक्कों का प्रचलन उदयपुर, डूँगारपुर, बांसवाड़ा, झालावाड़, रतलाम, जावरा, ग्वालियर, मंदसौर, सीतामऊ मे था।
  • कोटा क्षैत्र मे गुप्तों और हूणों के सिक्के प्रचलित थे। अकबर के समय मुगल काल मे हाली व मदनशाही सिक्के प्रचलित थे।
  • कोटा राज्य की टकसाले कोटा, गागरोन व झालरापाटन मे थी।
  • अलवर राज्य की टकसाल राजगढ मे थी। यहाँ सिक्के को `रावशाही रूपया` कहा जाता था। तांबे के सिक्के को `रावशाही टक्का` कहा जाता था। यहाँ अग्रेंजी पाव आना सिक्का भी चलन मे था।
  • करौली मे महाराज माणक पाल ने 1780 ई॰मे चाँदी व तांबे के सिक्के जारी किऐ जिन पर कटार व झाड़ के चिन्ह थे।
  • रंगमहल [श्री गंगानगर ] मे उत्खनन के दौरान 105 तंाबे के सिक्के मिले है जिन्हे मुख्डा नाम दिया गया है।
  • धौलपुर के सिक्कों को `तमंचा शाही` कहा जाता था।
  • झालावाड़ मे कोटा के सिक्के प्रचलित थे जिन्हे पुराना मदनसाही कहा जाता था।
  • मारवाड़ मे गुर्जर प्रतिहार शासकों के काल मे ऐसे सिक्के प्रचलित थे जिन पर यज्ञवेदी तथा रक्षक अंकित होते थे।
  • सिरोही राज्य का अपना कोई स्वतंत्र सिक्का नही था, यहाँ पर मेवाड़ का चाँदी का भीलाड़ी रूपया मारवाड़ का तांबे ढब्बूशाही रूपया चलता था।
  • महाराजा सूरजमहल ने शाहआलम के नाम चाँदी के सिक्के चलाऐ।
  • बीकानेर मे 1759 ई॰मे टकसाल स्थापित हुई तथा वहाँ शाहआलम के नाम पर सिक्के चलाऐ गऐ।
  • प्रतापगढ मे मुगल सम्राट शाह आलम की आज्ञा पर 1784 ई॰मे महारावल सालिम सिंह ने चाँदी के सिक्के चलाऐ।
  • शाहपुरा के शासको द्वारा 1760 ई॰मे ग्यारसंदिया नाम का सिक्का चलाया गया।
  • मेवाड़ मे तांबे के सिक्कों को ढीमला, भिलाड़ी भीडरिया, त्रिशूलिया तथा नाथ द्धारिया कहा जाता था। द्रम तथा ऐला सोने/चाँदी के सिक्के थे।
  • मेवाड़ मे प्रचलित सिक्को पर मनुष्य, पशु-पक्षी, सूर्य, चंद्र, धनुष, वृक्ष इत्यादि चित्र अंकित होते थे।
  • मेवाड़ मे गधिया मुद्रा भी चलती थी।
  • महाराणा कुम्भा द्वारा जारी सिक्कों पर कुंभकर्ण कुंभलमेरू अंकित होता था।
  • मुहम्मदशाह के समय जारी सिक्कों को चित्त्त्तोड़ी, शाहआलमी, भिलाड़ी तथा उदयपुुरी कहा जाता था।
  • महाराणा स्वरूप सिंह ने `स्वरूप शाही` सिक्का चलाया।
  • महाराणा, भीम सिंह ने अपनी बहन की स्मृति मे चांदौड़ी नामक सोने का सिक्का चलाया।

Leave a Comment

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.