राजस्थान में सभ्यता के प्राचीन स्थल | Part-2 | RAS EXAM

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राजस्थान में सभ्यता के प्राचीन स्थल

आहाड़:

  • आहाड़ राजस्थान के उदयपुर जिले में बनास नदी के पास एक गावँ है | इसी आधार पर इसे आहाड़ सभ्यता कहा गया है |
  • बनास नदी के आस पास लगभग 90 पुरास्थलो की खुदाई की गई जिनमे आहाड़ गिलुण्ड, बालाथल व ओजियाना प्रमुख है |
  • इस सभ्यता की दो मुख्य विशेषताए है –
  1. ताम्र धातु का उपयोग |
  2. काले एवं लाल रंग के मृदमांडो का उपयोग |
  • आहाड़ सभ्यता को बनास सभ्यता भी कहा जाता है |
  • इस सभ्यता की अवधि 3000ई.पू. से 1500ई.पू. मानी जाती है |
  • इस सभ्यता का विस्तार उदयपुर के अलावा भीलवाडा, चित्तौडगढ, डूंगरपुर,टोंक जिलो में है |
  • आहाड़ सभ्यता की संस्कृति ग्रामीण थी जहाँ जरूरत की चीजे वे खुद बना लेते थे |
  • मकानों की नीवं पत्थर से बनाई जाती, दीवारों में पक्क्की ईट व चटाई [बांस] – दोनों तरफ मिट्टी का लेप करके – का प्रयोग किया जाता, तथा फर्श काली चिकनी मिट्टी को कुट-कुट कर बनाई जाती | छत में बांस, बल्ली व घास- पूस का प्रयोग किया जाता था |
  • यहाँ के लोग शाकाहारी के साथ साथ उम्मीद की जाती है माँसाहारी भी रहे होंगे |
  • आभूषणो में हार, मालाऐ जो मणको से निर्मित थे तथा ताम्र व मिट्टी निर्मित चूड़ियाँ व कणीभूषण के शोकिन थे |
  • उत्खनन से प्राप्त दीपक से यह जाहिर होता है की अनुष्ठान में दीपक जलाए जाते थे | खुदाई में एक ऐसा प्रस्तर मिला है जिसमे नारी के दोनों पैर उकेरे हुए है जिससे मातृदेवी पूजा का आभाष होता है |
  • आर्थिक जीवन की बात करे तो उस समय लोग व्यापार, कृषि व पशुपालन, ताम्र व मृदपात्र कला में संलग्न थे |
  • कृषि में चावल, ज्वार, जौ व गेहूं की फसले उगाई जाती थी | उत्सन्न में तांबे की कुल्हाड़ी प्राप्त हुई है |
  • आहाड़ सभ्यता के लोग गाय, भेंस, बैल, भेड़, बकरी के साथ साथ हाथी व घोड़े से भी परिचित थे |
  • आहाड़ सभ्यता के काल में ताम्र उद्योग ### अवस्था में था | काले एवं लाल रंग के कई मृदपात्र उत्खनन में मिले है | ताम्र की 40 खाने मिली है |
  • विदित रहे ताम्र उद्योग के साथ साथ यहाँ मृदपात्र उद्योग भी उन्नत अवस्था में था |

बैराठ:

  • बैराठ जिसे वर्तमान में विराटनगर कहा जाता है, जयपुर जिले में आता है |
  • महाभारत काल में भी इसका उल्लेख मिलता है | प्राचीन काल में यह क्षैत्र मत्स्य देश / मत्स्य जनपद कहलाता था |
  • बैराठ क्षैत्र में उत्खनन के दौरान प्राप्त उपकरणों के आधार पर यह स्पष्ट होता है की यह क्षैत्र पुरापाषाण काल व मध्यपाषाण काल का साक्षी रहा है |
  • गणेश डूंगरी बीजक डूंगरी व भीम डूंगरी विराटनगर की पहाड़ियाँ है |
  • औकर-कलर पात्र कला का विकास भी बैराठ में हुआ |
  • Black & Red पात्र, पेन्टेड ग्रे पात्र बैराठ की प्रमुख विशेषता है |
  • 1837 में Captain बर्ट ने बीजक डूंगरी पर मौर्य-कालीन एक शिलालेख [Inscription] की खोज की | यह शिलालेख ब्राह्मी लिपि में था जिसे सम्राट अशोक ने बनवाया था |
  • कार्लाईल ने 1871-72 में भीम डूंगरी पर एक और शिलालेख खोज डाला |
  • बीजक डूंगरी के शिखर पर कुछ ऐसे अवशेष प्राप्त हुए है जो बौध धर्म से सम्बंधित है तथा जिनको चोट पहुंचाई गई थी [ध्वंसावशेष व भग्नावशेष] |
  • बैराठ संस्कृति ग्रामीण थी जहाँ मकानों में बांस व सरकंडो का उपयोग किया जाता था |
  • मुख्य व्यवसाय कृषि व पशुपालन था | गाय, बैल, भैंस, सूअर व घोड़े सामान्य जनजीवन के भाग थे, परन्तु भेड़, बकरी सिर्फ दूध, मांस व चर्म प्राप्ति हेतु पाली जाती थी |
  • सिक्को के अधिक प्रयोग से जहाँ उत्पादन में वृद्धि हुई वही वस्तु विनिमय में परेशानी बढ़ी | इस कारण ताम्बे व रजत के सिक्को का प्रयोग होने लगा |
  • दयाराम साहनी के अनुसार इस संस्कृति का नाश हुण शासक मिहिरकुल ने किया था |
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