सभी प्रकार की प्रतियोगी परीक्षाओं मे अकसर भारतीय राजव्यवस्था से जुड़े अनेक प्रश्न आते है। इस तथ्य को मध्य नजर रखते हुऐ संवैधानिक विकास से संबधित कुछ महत्वपूर्ण [V.I.N] तथ्य नोटस के रूप मे वर्णित है –
1.रेग्यूलेटिंग एक्ट – 1773 :
यह एक्ट ब्रिटेन के तात्कालिक प्रधानमंत्री लोर्ड नॉर्थ द्वारा गठित एक गुप्त समिति को सिफारिश के आधार पर पारित हुआ।
यह अधिनियम 1773 मे पारित व 1774 मे लागू हो गया।
इस अधिनियम के द्वारा कम्पनी के शासन पर संसदीय निंयत्रण स्थापित हो गया।
बंगाल के गवर्नर जनरल नाम दिया गया। बंगाल का गवर्नर जनरल अब तीनो प्रेसीडेन्सीज – बंगाल, मद्रास व बम्बर्ड का गवर्नर जनरल बन गया ।
प्रथम गर्वनर जनरल वारेन हेस्टिग्जं बने ।
इस एक्ट के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना हुई [1774 मे] ।
प्रथम मुख्य न्यायाधिपति सर ऐलिजाह इम्पे बने । अन्य तीन न्यायाधीश थे-चैम्बर्स, लिमेस्टर एवं हाइड ।
सर्वोच्च न्यायालय के क्षैताधिकार मे बंगाल, बिहार व उडीसा आते थे।
कम्पनी के शासन हेतू प्रथम बार एक लिखित संविधान बना।
कोर्ट ऑफ डायरेक्टर के कार्यकाल को 1 वर्ष से बढाकर 4 वर्ष कर दिया गया ।
कम्पनी के कर्मचारियों को नीजि व्यापार करने से रोक दिया गया तथा भारतियों से उपहार लेने पर पाबंदी लगा दि गई।
2.बंदोबस्त कानून – 1781 :
रेग्यूलेटिंग एक्ट की कमियों को दूर करने निमित्त यह एक्ट पारित किया गया [1781 मे] जिसे एक्ट ऑफ सैटलमेन्ट भी कहा जाता है।
इस एक्ट के द्वारा गर्वनर जनरल व उसकी कौसिंल को सर्वोच्च न्यायालय के क्षैत्राधिकार से बाहर रखा गया ।
कम्पनी के सेवकों द्वारा शासकीय हैसियत से जो भी कार्य करेगें सर्वोच्च न्यायालय के क्षैत्राधिकार से बहार रहेगें।
प्रान्तीय न्यायालयों की अपील गवर्नर जनरल की कौंसिल मे होगी न कि सर्वोच्च न्यायालय मे।
राजस्व बसूली संबंधी मामले भी सर्वोच्च न्यायालय के क्षैत्राधिकार से बाहर होगें।
3.पिट्स इण्डिया एक्ट – 1784 :
इस एक्ट के द्वारा कम्पनी पर ब्रिटिश सरकार का नियंत्रण कड़ा हो गया।
बोर्ड ऑफ कन्ट्रोल की स्थापना हुई।
इस एक्ट ने द्धैध शासन को जन्म दिया ।
कम्पनी के राजनीतिक कार्य अब बॉर्ड ऑफ कण्ट्रोल देखेगा तथा व्यापारिक कार्य बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर्स देखेगा।
गर्वनर जनरल बॉर्ड कण्ट्रोल कि आज्ञा के बिना किसी भी भारतीय नरेश के साथ न युद्ध कर सकता और नही संधि।
प्रांतीय परिषद के सदस्यों की संख्या से 4 धटाकर कर 3 दी गई।
4.1786 का अधिनियम :
इस अधिनियम के द्वारा गवर्नर जनरल को विशेष परिस्थितियों मे अपनी परिषद के निर्णय को निरस्त करने का अधिकार दिया गया तथा साथ ही प्रावधान बनाया गया कि वह अपने निर्णय को लागू कर सकता है। यह शक्ति पाने वाला लॉर्ड कॉर्नवलिस पहला गवर्नर जनरल था ।
5.1793 का चार्टर एक्ट :
इस अधिनियम के द्वारा नियण्त्रक मण्डल के सदस्यों को भारतीय राजस्व से वेतन देने की व्यवस्था की गई। सभी कानूनों व नियमों की व्याख्या करने का अधिकार न्यायालय को दिया गया । कम्पनी के व्यापारिक अधिकारों को 20 वर्ष के लिऐ बढा दिया ।
6.1813 का चार्टर एक्ट :
इस एक्ट के द्वारा ब्रिटिश संसद ने चाय के व्यापार व चीन के साथ व्यापार को छोडकर ईस्ट इण्डिया कम्पनी के व्यापारिक एकाधिकार समाप्त कर दिऐ गऐ ।
ब्रिटिश नागरिकों के लिऐ भारत मे व्यापार के रास्ते खोल दिऐ गऐ हालांकि सीमाऐं निर्धारित की गई ।
ईसाई मिशनरीज को भारत मे रहने व धर्म प्रचार करने की इजाजत मिल गई।
भारत मे शिक्षा पर सालाना 1 लाख रू खर्च करने की अनुमति दी गई ।
स्थानीय स्वायतशासी संस्थाओं को कर लगाने [Taxation] का अंधिकार दिया गया ।
7.1833 का चार्टर एक्ट:
इस एक्ट के द्वारा देश की प्रशासनिक व्यवस्था का केन्द्रीयकरण किया गया ।
इस एक्ट के द्वारा बंगाल के गवर्नर जनरल को पूरे भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया ।
लॉर्ड विलियम बैंटिक भारत के प्रथम गवर्नर जनरल बने।
ईस्ट इण्डिया कम्पनी के व्यापारिक एकाधिकार पूणर्तया समाप्त कर दिऐ गऐ । अब वह प्रशासनिक विषय देखेगी ।
गवर्नर जनरल की परिषद को पूरे भारत मे विधि बनाने का अधिकार दे दिया गया, परन्तु यह नियन्त्रक मण्डल के अधीन था नियन्त्रक मंडल इसे अस्वीकार कर सकता था ।
गवर्नर जनरल विधि आयोग का गठन कर सकता था ।
विधि आयोग के प्रथम अध्यक्ष लॉर्ड मैकाले थे।
इस एक्ट के द्वारा केन्द्रीय कोंन्सिल को ऐसे कानून बनाने का अधिकार दे दिया जो भारत मे रहने वाले अग्रेंजो पर लागू होते थे।
इस एक्ट के द्वारा भारत मे दासता को अवैध धोसित कर दिया हालाकि दास प्रथा का उन्मूलन 1843 मे हुआ ।
इस एक्ट के द्वारा पहली बार योग्यता संबंधी मानदण्ड निर्धारित किऐ गऐ तथा भेदभाव को समाप्त किया गया ।
सिविल सेवा मे खुली प्रतियोगिता की शुरूआत हुई।
यह एक्ट भारत मे सत्त के विकेन्द्रीकरण पहला कथन माना जाता है।
8.1853 का चार्टर एक्ट:
इस एक्ट के द्वारा सर्वप्रथम एक विधान परिषद की स्थापना की गई ।
गवर्नर जनरल की परिषद ने विधायी कायो को प्रशासनिक कार्यो से प्रथक करने निमित्त एक 12 सदस्यीय परिषद की स्थापना की । यह एक प्रकार की मिनि संसद थी।
सिविल सेवा हेतू ‘ खूली प्रतियोगी परीक्षा ’ की शुभारम्भ।
इस एक्ट के द्वारा सिविल संषंद मे मैकाले समिति का गठन किया गया।
9.भारतीय शासन अधिनियम, 1858 :
इस अधिनियम द्वारा ईस्ट इण्डिया कम्पनी का शासन समाप्त कर दिया गया । अब भारत पर शासन ब्रिटेन की महारानी करेगी।
भारतीय मामलों पर ब्रिटिश संसद का सीधा नियन्त्रण हो गया ।
गवर्नर जनरल पदनाम हटाकर अब वायसराय कर दिया गया।
लॉर्ड कैनिंग भारत के अन्तिम गवर्नर जनरल व प्रथम वायसरॉय बने।
बोर्ड ऑफ कण्ट्रोल व बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स को समाप्त कर दिया गया ।
एक नया पद – भारत मंत्री/भारत सचिव – सृजित किया गया जो ब्रिटिश सांसद होता था तथा सीधे ब्रिटिश संसद के प्रति उत्तरदायि होता था ।
15 सदस्यों की भारत परिषद का गठन किया गया जिनकी नियुक्ति भारत मंत्री की सलाह पर ब्रिटिश महारानी द्वारा की जाती थी।
10. भारतीय परिषद अधिनियम 1861 :
इस अधिनियम ने भारत मे ‘प्रतिदिन शासन’ व ‘शासन के विकेन्द्रीकरण’ की नीवं रखी ।
1859 मे ‘विभागीय प्रणाली’ को वैधानिक मान्यता मिली।
मंत्री मंडलीय प्रणाली शुरू हुई, वायसराय को आपातकाल मे बिना परिषद की सिफारिश के अध्यादेश [ordinance] लगाने की शक्ति दी।
वायसराय के पास निषेधाधिकार शक्ति भी थी।
वायसराय की कार्यकारी परिषद मे 5 वां विधि सदस्य शामिल किया गया।
बम्बई एवं मद्रास प्रान्तों को लिऐ कानून बनाने व उनमे संशोधन करने की शक्ति मिल गई।
गवर्नर जनरल को नये प्रान्त गठित करने व उप – राज्यपाल [Lieutenant Governor] नियुक्त करने की शक्ति मिल गई ।
कानून निमार्ण हेतू वायसराय की कार्यकारी परिषद मे न्यूनतम 6 व अधिकतम 12 सदस्यों की नियुक्ति की व्यवस्था की गई।
पहली बार विधायी परिषद मे गैर सरकारी सदस्यों को मनोनित करने की व्यवस्था की गई ।
1862 मे लॉर्ड कैनिंग ने तीन भारतियों – बनारस के राजा, पटियाला के महाराजा व सर दिनकर राव को विधान परिषद मे मनोनित किया गया।
केन्द्र व प्रान्तों मे विधान परिषद की स्थापना की गई ।
भारत मे पहली बार प्रतिनिधि संस्थाऐं लाई गई। कलकता, बम्बई व मद्रास मे उच्च न्यायालयों की स्थापना की गई ।
11. भारतीय परिषद अधिनियम, 1892 :
आंशिक रूप से संसदीय शासन की शुरूआत ।
भारतीय विधान परिषदों को शक्तियां व अधिकार देने की कोशिश की गई।
अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली की शुरूआत हूई।
केन्द्रीय विधान परिषद के भारतीय सदस्यों को बजट पर बहस करने, कार्यकारिणी से प्रश्न व अनुपूरक प्रश्न पूछने की शक्ति दी गई।
मतदान का अधिकार नहीं था।
12. भारतीय परिषद अधिनियम, 1909:
इस अधिनियम को मार्ले मिंटो सुधार अधिनियम भी कहते है।
लॉर्ड कर्जन ने 1902 मे विश्वविधालय आयोग व पुलिस आयोग का गठन किया।
1905 मे लॉर्ड कर्जन ने बंगाल विभाजन करवाया जिससे भारतीय जनता सख्त नाराज थी।
तात्कालिक भारत मंत्री [Secretaryab india for state] मार्ले व वायसरॉय मिन्टो ने यह संवैधानिक प्रस्ताव तैयार किया ।
सर अरूण्डेल समिति की सिफारिश पर इसे फरवरी 1909 मे पारित किया गया ।
भारत मे साम्प्रायिक निर्वाचन प्रणाली को जन्म देने वाला यही अधिनियम था जिसमें मुसलमानों के लिऐ प्रथक प्रतिनिधित्व की व्यवस्था की गई।
विधान परिषद के सदस्यों को प्रश्न पूछने का अधिकार दिया।
कार्यपालिका परिषद के प्रथम विधि सदस्य के रूप मे सत्येन्द्र प्रसाद सिन्हा को शामिल किया ।
केन्द्रीय व प्रान्तीय विधानपरिषदों मे निर्वाचन सदस्यों की संख्या बढा दी गई।
निर्वाचन मण्डल की सदस्यता हेतू सम्पति आय व शैक्षणिक योग्यता के आधार पर भेदभाव किया जाने लगा ।
केन्द्रीय व प्रान्तीय विधान परिषद के सदस्यों को प्रश्न पूछने स्थानीय संस्थाओं को कर्ज देने अतिरिक्त अनुदान देने तथा नऐ कर लगाने संबंधी प्रस्तावों को प्रस्तावित करने का अधिकार दिया गया ।
सार्वजनिक हित से जुड़े विषयों की विवेचना करने प्रस्ताव पारित करने तथा उन पर मत विभाजन की माँग करने का अधिकार दिया। परन्तु सदन द्वारा पारित प्रस्ताव सरकार के लिऐ वाध्यकारी नहीं थे।
केन्द्रीय विधान परिषद मे चार प्रकार के सदस्य शामिल किऐ गऐ – पदेन सदस्य मनोनित सरकारी सदस्य मनोनित गैर सरकारी सदस्य तथा निर्वाचन सदस्य।
प्रान्तीय विधान परिषदों मे सरकारी सदस्यों का बहुमत रखा गया परन्तु सरकारी तथा मनोनित गैर सरकारी सदस्यों की संख्या निर्वाचन सदस्यों की संख्या से अधिक रखी गई।
मजूमदार इस अधिनियम को चंद्रमा की चाँदनी कहता है।
लॉर्ड मिन्टो ने कहा, “ हम नाग के दाँत बो रहे है और इसका फल भीषण होगा ” ।
13.भारत शासन अधिनियम, 1919 :
यह अधिनियम 1921 मे लागू हुआ।
इस अधिनियम को मान्टेग्यू – चैम्सफोर्ड सुधार अधिनियम भी कहा जाता है।
केन्द्र उद्धेश्य भारत मे उत्तरदायी शासन की स्थापना करना है।
केन्द्र मे द्धिसदनात्मक विधायिका की स्थापना की गई – प्रथम राज्य परिषद तथा दूसरी केन्द्रीय विधान सभा।
देश मे प्रत्यक्ष निर्वाचन की शुरूआत हुई।
प्रान्तो मे द्वेध शासन प्रणाली की शुरूआत की गई।
द्वैध शासन मे प्रशासन दो भागों मे बँट गया:
1.हस्तान्तरित विषय 2. आरक्षित विषय
शिक्षा, चिकित्सा सहायता, न्याय, पुलिस, पेंशन, सिंचाई,
स्थानीय स्वायत शासन, जलमार्ग, छापाखाना,
पुस्तकालय, सार्वजनिक निर्माण मोटर गाडियां, छोटे बन्दरगाह,
विभाग, उधोग इत्यादि बिजली औधोगिक विवाद इत्यादि
केन्द्र द्वारा प्रान्तो को विधायी शक्तियाँ हस्तांतरित की गई ।
हस्तांतरित विषयों पर शासन गवर्नर उन मंत्रियों के परामर्श से करता था जो विधानमण्डल के प्रति उत्तरदायी होते थे।
संरक्षित विषयों पर शासन राज्यपाल उन परामर्श दाताओं के सहयोग से करता था जो विधानपरिषद के प्रति उत्त्रदायी नही होते थे।
उच्च सदन – राज्यपरिषद – कार्यकाल 5 वर्ष।
राज्य परिषद मे कुल 60 सदस्य निर्वाचित होते थे।
निम्न सदन केन्द्रीय विधान सभा था जिसका कार्यकाल 3 वर्ष व कुल सदस्य 144 निर्धारित किऐ गऐ ।
इस अधिनियम के आधार पर पहली बार 1920 मे निर्वाचन हुआ।
प्रथम केन्द्रीय विधानसभा का गठन 9 फरवरी 1921 को किया गया ।
इस अधिनियम के अन्तर्गत विधान परिषद मे तीन प्रकार के सदस्य थे – (i) निर्वाचित (ii) मनोनित सरकारी (iii) मनोनित गैर सरकारी
इस अधिनियम के अन्तर्गत सीमित मताधिकार तथा साम्प्रदायिक निर्वाचक मण्डल की व्यवस्था की गई ।
निर्वाचन क्षैत्रों को भागों मे बांटा गया –
(i) सामान्य – हिन्दू मुसलमान ईसाई सिख आंग्ल – भारतीय आदि । (ii) विशिष्ट – भू – स्वामी विश्वविधालय व्यापार मण्डल आदि।
केन्द्रीय सूचि मे उल्लेखित विषयों पर कानून निर्माण या उसे अस्वीकार करने का अधिकार विचार करना। ये अधिकार केन्द्रीय विधान मण्डल के पास थे हांलाकि किसी विधेयक के सम्बन्ध मे अन्तिम निर्णय गवर्नर जनरल करता था। विधेयक के सम्बन्ध मे गवर्नर जनरल के पास बहुत अधिकार थे।
केन्द्रीय विधानमण्डल के पास वितीय अधिकार बहुत सीमित थे।
बजट को दो भागों मे बाँटा गया था ।पहली बार केन्द्रीय व प्रान्तीय बजट पृथक पृथक पेश किऐ गऐ ।
कुल खर्च ⅓ के भाग पर ही सदस्य मतदान कर सकते थे।
प्रान्तीय विधानमण्डलों को प्राप्त विषयों पर कानून बनाने का अधिकार प्राप्त था परन्तु यहाँ पर भी गवर्नर हावी रहता था।
गवर्नर विधान परिषद द्वारा पारित किसी भी विधेयक पर निषेधाधिकार का प्रयोग कर सकता था।
परिषदों को प्रान्तीय वित पर भी नियन्त्रण का अधिकार दिया गया था परन्तु यहाँ पर भी गवर्नर की शक्तियाँ प्रभावशाली थी।
कार्यकारी परिषद : भारत मंत्री के प्रति उत्तदायी । 6 सदस्यों मे से 3 सदस्यों के भारतीय होने की बात रखी गई।
इस अधिनियम के द्वारा पहली बार भारत मे लोक सेवा आयोग के गठन की व्यवस्था की गई।
इस अधिनियम द्वारा महिलाओं को मताधिकार दिया गया ।
पहली बार लंदन मे भारतीय उच्चायुक्त नामक अधिकारी की नियुक्ति की गई।
महालेखा परीक्षक की शक्तियों मे वृद्धि की गई।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारत शासन अधिनियम, 1919 को असन्तोषजनक व निराशाजनक बताया ।
लोकमान्य तिलक ने इस अधिनियम को ‘बिना सूरज का सवेरा’ कहा।
14.भारतीय शासन अधिनियम, 1935:
यह अधिनियम ईग्लैण्ड के तात्कालिक प्रधानमंत्री मैक्डोनाल्ड द्वारा रचित साम्प्रदायिक पंचाट व गांधी जी तथा अम्बेडकर के मध्य हुऐ ‘पूना समझौता’ के आधार पर बना ।
संधात्मक सरकार की स्थापना की गई।
प्रान्तो मे द्वैध शासन समाप्त कर केन्द्र मे लगाया गया ।
यह अधिनियम भारत मे पूर्ण उत्तरदायी सरकार के गठन मे मील का पत्थर साबित हुआ।
साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली का विस्तार करते हुऐ इसमे महिलाओं, मजदूरों, व दलित जातियों को भी शामिल किया गया ।
भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की गई ।
1937 मे संधीय न्यायालय की स्थापना की गई।
बर्मा [म्यामांर] को भारत से अलग किया गया व उडीसा तथा सिंध नामक दो नऐ प्रान्त गठित किऐ ।
11 राज्यों मे से 6 मे द्धिसदनात्मक व्यवस्था की गई।
इस अधिनियम मे 14 भाग, 321 धाराऐ व 10 अनुसूचिया [Schedules] थी।
तीन सूचि बनाकर केन्द्र व ईकाईयों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया :
I.संधीय सूची – 59 विषय
II.राज्य सूचि – 54 विषय
III.समवर्ति सूचि – 36 विषय
अवशिष्ट शक्तियाँ गवर्नर जनरल के पास हुआ करती थी।
1935 के अधिनियम की विशेषताएँ:
- प्रास्तावना : 1935 के अधिनियम की अपनी कोई प्रस्तावना नहीं थी, परन्तु 1919 के अधिनियम की प्रस्तावना इसमे जोड़ दी गई।
- अखिल भारतीय संध : इस प्रस्तावित संध का निर्माण 11 ब्रिटिश प्रान्तो, 7 चीफ कमीश्नरी क्षैत्रों तथा स्वेच्छा से शामिल होने वाली देशी रियासतों को मिलाकर किया गया । देशी राजाओं की असहमति व ‘द्धितिय विश्व युद्ध शुरू होने से यह प्रस्तावित संध लागू नही हो सका।
- शक्तियों का विभाजन : तीन सूचियों का निर्माण कर केन्द्र व ईकाईयों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया ।
- केन्द्र मे द्वैध शासन प्रणाली : केन्द्रीय सरकार के विषयों को दो वर्गो – संरक्षित व हस्तांतरित मे बाँट दिया गया।
- प्रान्तीय स्वायत्तता : प्रान्तो मे जारी द्धैध शासन को हटा दिया गया क्योंकि यह दोषपूर्ण था। अब विषयों को दो भागों मे बाँट गया – संरक्षित व हस्तांतरित।
- गवर्नर जनरल व प्रान्तीय गवर्नरों को व्यापार अधिकार दिऐ गऐ ।
- एक संधीय न्यायालय की स्थापना हुई जिसे फेडरल कोर्ट नाम दिया गया । इसका काम था संध व ईकाईयों के बीच उठने वाले संविधानिक विवादो को सुलझाना। इसके खिलाफ अपील लंदन स्थित ‘प्रिवी कौसिल’ मे होती थी।संधीय न्यायालय की स्थापना 1 अक्टूबर, 1937 को हुई जिसका प्रथम मुख्य न्यायाधीश मॉरिश ग्वेयर थे।
- विधानमण्डलों मे मताधिकार का विस्तार किया गया । गवर्नर वाले 11 प्रान्तो के विधानमण्डलों मे से विधानमण्डल द्विसदनात्मक कर दिऐ गऐ थे। विधायिका के दो सदन थे – उच्च संदन : राज्य परिषद व निम्न सदन : केन्द्रीय विधानसभा।
- साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली का विस्तार : मुसलमानों के साथ साथ भारतीय ईसाई, सिक्ख, जमीदार, पूंजीपति, महिला, मजदूर, यूरोपीय के लिऐ भी साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली की शुरूआत हुई।
- अधिनियम के अन्य उपबन्ध :
I. गवर्नर जनरल के आपातकालीन अधिकार
II. प्रान्तो का पुनर्गठन व बर्मा का अलगाव
III. भारतीय लोक सेवाओं के हितों के संरक्षण हेतू आरक्षण।
- IV. रिजर्व बैंक की स्थापना।
- V. गवर्नर जनरल को अध्यादेश जारी करने का अधिकार।
आलोचनाऍं:
जवाहर लाल नेहरू ने 1935 के अधिनियम को ‘दासता का चार्टर’ कहा ।
मोहम्मद अली जिन्ना : ‘पूर्णत’ : सड़ा हुआ मूल रूप से बुरा, बिलकुल अस्वीकृत।
15.भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 :
माऊण्टबटेन योजना का प्रस्ताव 4 जुलाई, 1947 को ब्रिटिश संसद मे रखा गया, 18 जुलाई, 1947 को पारित हो गया ।
इस माऊण्टबेटन योजना के तहत 3 जून, 1947 को भारत विभाजन की धोषणा हुई।
भारत व पाकिस्तान 15 अगस्त, 1947 को दो अलग राष्ट्र के रूप मे अस्तित्व मे आऐ।
स्वतंत्र भारत के अन्तिम ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड माऊण्टबेटन बने व जवाहरलाल नेहरू को भारत का प्रधानमंत्री धोषित किया गया।
भारत के प्रथम व अन्तिम भारतीय गवर्नर जनरल बने थे – चक्रवर्ती राजगोपालाचारी । प्रत्येक राज्य की अपनी विधायिका होगी।
वायसराय का पद समाप्त कर दो Dominion राज्यों मे गवर्नर जनरल का पद सृजित हुआ।
भारत मंत्री [भारत सचिव ] का पद समाप्त कर दिया गया । देशी रियासतों से ब्रिटिश प्रभूसत्ता समाप्त।
देशी रियासतों का स्वेच्छाानुसार विलय भारत या पाकिस्तान मे।
‘भारत का सम्राट’ पद समाप्त।
बंगाल व पंजाब दो भागों मे विभाजित ।
विभाजित भारत की संविधान सभा मे 2.99 सदस्य रह गऐ।