राजस्थान में गोवंश, भैंसवंश व बकरी व भेड़ सम्पदा | RAS EXAM

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परीक्षापयोगी महत्वपूर्ण नोट्स

राजस्थान पशु सम्पदा में पुरे भारत वर्ष में सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखता है | अत: राजस्थान सामन्य ज्ञान का यह अति महत्वपूर्ण विषय है | अभ्यार्थीगण को चाहिए की वे इस विषय पर जितने भी महत्वपूर्ण नोट्स तैयार किये गये है को अच्छी तरह आचमन करे

  • राजस्थान के बाड़मेर में सबसे ज्यादा पशु पाऐ जाते है जबकि सबसे कम धौलपुर में |
  • सबसे ज्यादा गाये उदयपुर जिले में व सबसे कम धौलपुर जिले में पाई जाती है |
  • राजस्थान में सर्वाधिक घोड़े, गधे, ऊँट, भेड़ व बकरी बाड़मेर में पाई जाती है |
  • राज्य में गोशाला आयोग की स्थापना 1995 में हुई | मुख्य केंद्र जयपुर है |
  • राज्य का एक मात्र गौ-मूत्र बैंक सांचोर जिला जालौर में है |
  • जयपुर तहसील के गावँ हिंगोनिया में गौमूत्र से फिनाईल तैयार होता है |
  • राज्य में गौ सेवा संघ का कार्यालय अजमेर में है |
  • गौवंश सम्पदा का राजस्थान में बकरी के बाद दूसरा स्थान है |
  • गाय का वैज्ञानिक नाम – Bos taurus
  • राजस्थान का पहला सीमन बैंक बस्सी [जयपुर] में है |
  • गो संवधर्न फार्म बस्सी [जयपुर] में है |
  • आयरसर, स्विस ब्राउन, बानर्सी/ जर्सी [अमेरिका], रेडडेन [डेनमार्क] इत्यादि गायो की विदेशी नस्ले है जो राजस्थान में पाई जाति है | हरियाणवी नस्ल की गाय का मूल स्थान रोहतक [हरियाणा] है |
  • प्रजनन केंद्र कुम्हेर [भरतपुर] में है|
  • इसके प्रमुख मेले गोगाभेडी हनुमानगढ़ व जसवंत पशु मेला भरतपुर में लगता है|
  • राठी नस्ल- यह लाल सिन्धी व साहीवाल की मिश्रित नस्ल है | इसे राजस्थान की कामधेनू भी कहा जाता है |
  • इसका प्रजनन केंद्र नोहर- हनुमानगढ़ में है |
  • शोध केंद्र अनुपगढ- गंगानगर में है |
  • थारपारकर नस्ल – पाकिस्तान के सिंध प्रान्त व बाड़मेर के मालाणी क्षैत्र की नस्ल है |
  • इस नस्ल की गाय मल्लीनाथ पशु मेले में पाई जाती है |
  • इसका प्रजनन केंद्र जैसलमेर जिले के गावँ चाँदन में है |
  • मेवाती नस्ल – इसका उपनाम कांठी है | प्रजनन केंद्र बस्सी [जयपुर] है |
  • नागौरी नस्ल- इस नस्ल के बैल विश्वभर में भारवाहक के रूप में प्रसिद्ध है | इनका मुख्य स्थान गावँ सुहालका जिला नागौर है |
  • प्रजनन केंद्र नागौर में है |
  • सांचोरी नस्ल व कांकरेज नस्ल मिलती- जुलती नस्ले है | प्रजनन केंद्र सांचौर [जालौर] है |
  • कांकरेज नस्ल- यह गाय की द्वि प्रयोजनी नस्ल है |
  • इसका मूल केंद्र कच्छ का रन [गुजरात] है | प्रजनन केंद्र चौहटन जिला बाड़मेर है |

>सबसे भारी नस्ल | > सबसे मजबूत सींग

  • गिर नस्ल- गिर बन [सौराष्ट्र- गुजरात] इसका मूल केंद्र है |
  • इस नस्ल को अजमेरा व रैंडा भी कहा जाता है |
  • यह नस्ल द्वि प्रयोजनी है [दूध व बौझा दोनों के लिए प्रसिद्ध] |
  • प्रजनन केंद्र – डग जिला झालावाड व रामसर जिला अजमेर है |

भेंस वंश

  • राजस्थान में सबसे ज्यादा भैंसे जयपुर व अलवर जिलो में पाई जाती है |
  • भैंस का वैज्ञानिक नाम – Bubalus bubalis है |
  • सबसे कम भैंसे जैसलमेर व प्रतापगढ़ जिलो में पाई जाती है |
  • राजस्थान में भैंस अनुसंधान व प्रजनन केंद्र वल्लभनगर [उदयपुर] में है |
  •  राजस्थान का भारत में स्थान – द्वितीय |
  • देश में प्रथम स्थान उत्तरप्रदेश का है |
  • राज्य में भैंस सम्पदा का स्थान बकरी व गाय के बाद तृतीय है |
  • भैंस की सर्वोत्तम नस्ल मुर्रा है |
  • भैंसों में पाया जाने वाला प्रमुख रोग है ठप्पा/ खुरपका है |
  • विश्व का प्रथम भैंस क्लोन है- गरीमा |
  • विश्व की प्रथम क्लोन करडी है – महिमा |
  • कुल पशु सम्पदा में भैंस सम्पदा 22.47% है |

भेड़ सम्पदा

  • राजस्थान में सबसे ज्यादा भेड़ बाड़मेर जिले में व सबसे कम बांसवाडा जिले में पाई जाती है | भेड़ सम्पदा में राजस्थान चौथे स्थान पर है | भेड़ के कुछ अन्य नाम : गाडर, गारो व लरडी विदित रहे भारत में सर्वधिक भेड़ वाला राज्य आन्ध्र प्रदेश है |
  • भेडो के झुण्ड को रेवड कहा जाता है |
  • भेड़ का वैज्ञानिक नाम है- ovisaris
  • एशिया की सबसे बड़ी ऊन मंडी है- बीकानेर
  • राजस्थान में भेड़ व ऊन विभाग की स्थापना 1963 में हुई |
  • केंद्रीय भेड़ प्रजनन व ऊन अनुसंधान अविका नगर [टोंक] में है जिसकी स्थापना 1962 में हुई |
  • सबसे बड़ा ऊन उत्पादक वाला जिला जोधपुर है तो न्यूनतम उत्पादन वाला जिला झालावाड है|
  • भेडो में पाए जाने वाले रोग है फडकिय व तरडिया, व्ल्यु टेग |
  • भारत में सबसे ज्यादा ऊन राजस्थान में तैयार होती है |
  • भेड़ अनुसंधान उपकेन्द्र बीछवाल [बीकानेर] में स्थित है |
  • भेड़ के नर बड़ा बच्चा भीढा कहलाता है |
  • भेड़ के मांस को अंग्रेजी में मटन कहा जाता है |
  • मादा भेड़ ऊरणी कहलाती है |
  • राजस्थान में भेड़ व ऊन प्रशिक्षण संस्धान जयपुर में स्थित है |
  • भीलवाडा, झुंझुनू , चुरू व जयपुर में विदेशी भेड़ तैयार करने हेतु प्रजनन केंद्र है |
  • नाली नस्ल- इस नस्ल की भेड़े उत्तरी राजस्थान में पाई जाती है | इनकी ऊन लम्बे रेशे वाली होती है जो कालीन बनाने के काम आती है |
  • इसका प्रजनन केंद्र हनुमानगढ़ में है |
  • बागड़ी नस्ल की भेड़ अलवर व भरतपुर जिलो में पाई जाती है जिसका आधा मुहँ काला व आधा सफेद होता है |
  • मालपुरी नस्ल की भेड़ का रेशा मोटा होता है जो कालीन बनाने के काम आता है |
  • इस नस्ल की भेड़ का अनुसंधान एवं प्रजनन केंद्र अविकानगर [टोंक] फतेहपुर [सीकर] एवं बांकलिया [नागौर] में है |
  • मारवाड़ी नस्ल – राज्य में इस नस्ल की भेड़ सर्वाधिक पाई जाती है | इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है |
  • इस नस्ल की भेड़ का प्रजनन एवं अनुसंधान केंद्र जोधपुर है |
  • खैरी – इस नस्ल की भेड़ घुमक्कड़ रेवड़ो में पाई जाती है |
  • सोनाडी नस्ल- इस नस्ल की भेड़ के कान इतने लम्बे होते है की चरते समय जमीन पर लगते है | इसका दूसरा नाम है – चनोधर |
  • इस नस्ल की भेड़ हेतु अनुसंधान एवं प्रजनन केंद्र चित्तौडगढ में है |

(I)अविका क्रेडिट कार्ड योजना व (II) अविका कवच योजना इसी नस्ल की भेड़ हेतु है |

  • पूंगल नस्ल – इस नस्ल की भेड़ का मूल स्थान बीकानेर है | प्रजनन एवं अनुसंधान केंद्र भी बीकानेर है |
  • जैसलमेरी नस्ल – इस नस्ल की भेड़ सर्वाधिक ऊन देती है |

अनुसंधान एवं प्रजनन केंद्र है –

1.पोकरण जिला जैसलमेर

2. मण्डोर – जोधपुर

  • मगरी / चकरी नस्ल की भेड़ का अनुसंधान केंद्र कोडमदेसर [बीकानेर] है |
  • इस नस्ल की भेड़ से प्राप्त ऊन का प्रयोग चमकदार कालीन बनाने में किया जाता है |
  • रूसी मेरिनो [स्पेन व उत्तरी अफ्रीका], डोर्सेट, रेम्बुले, केरिडेल इत्यादि विदेशी भेडो की नस्ले है जो राजस्थान में पाई जाती है |

बकरी सम्पदा

  • बकरी सम्पदा में पूरे भारतवर्ष में राजस्थान प्रथम स्थान पर है |
  • बकरी का वैज्ञानिक नाम है – capra aegarushirocus
  • राजस्थान में बकरी सम्पदा भारत की कुल बकरी सम्पदा का 16.08% है |
  • राजस्थान में सबसे ज्यादा बकरी बाड़मेर व जोधपुर जिलो में पाई जाती है वही न्यूनतम धौलपुर व कोटा में |
  • परबतसरी नस्ल – यह बकरी की मिश्रित नस्ल है : हरियाणा- बीटल नस्ल + राजस्थान का सिरोही |
  • मारवाड़ी नस्ल – यह बकरी की नस्ल न केवल सबसे प्राचीन बल्कि राजस्थान की मूल नस्ल भी है | राज्य में इस नस्ल की बकरियाँ सबसे ज्यादा पाई जाती है |
  • यह द्विप्रयोजनी नस्ल है | इस नस्ल की बकरी मांस के लिए प्रसिद्ध है |
  • सिरोही – इस नस्ल की बकरी का प्रयोग भी ज्यादातर मांस के लिय किया जाता है |
  • इस नस्ल की बकरी का प्रजनन केंद्र रामसर [जिला अजमेर] है |
  • लोही नस्ल की बकरी भी मांस के लिऐ काफी प्रसिद्ध है |
  • शेखावाटी- इस नस्ल की बकरी एक सींग वाली होती है | इसका विकास का जरी अनुसंधान केंद्र द्वारा किया गया |
  • जखराना- इस नस्ल की बकरी सबसे ज्यादा दूध देती है यह बहरोड़ जिला अलवर क्षेत्र में पाई जाती है |
  • बरबरी / बडवरी – इस नस्ल की बकरी राजस्थान में सबसे ज्यादा सुंदर होती है | इसकी प्रजनन क्षमता सर्वाधिक होती है |
  • जमनापुरी – इस नस्ल की बकरी दूध व मांस के लिऐ प्रसिद्ध है | यह हाडौती क्षेत्र में पाई जाती है | यह द्विप्रयोजनी नस्ल है |
  • नागौर जिले का गावँ वरुण बकरियों के लिए विश्व में प्रसिद्ध है |
  • बकरी की कीमत ‘लाण’ कहलाती है | राजस्थान की कूल पशु सम्पदा में सबसे ज्यादा बकरी पाई जाती है |
  • बकरियों में पाए जाने वाला रोग ‘गोट पोल्स’ है |
  • राज्य का सबसे बड़ा बकरी पालन फार्म बलेखण जिला सीकर में है |
  • बकरी को ‘गरीब की गाय’, ‘रेगिस्तान का फ्रिज’ भी कहा जाता है |
  • बकरी के मांस को चेवणी कहा जाता है |
  • भेड व बकरी प्रजनन नीति 2009 में घोषित की गई थी |
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