राजस्थान के इतिहास में मेवाड रियासत का एक अभूतपूर्व स्थान है | इस रियासत ने अनेक वीर शासको को जन्म दिया ; अत: ऐसे में इस रियासत से सम्बंधित अनेक महत्वपूर्ण प्रश्न बनते है | आप चाहे RAS के अभ्यार्थी हो या पटवार, रीट परीक्षाओ के अभ्यार्थी, आपके लिए ये नोट्स सुनहरे अवसर की तरह है |
मेवाड का इतिहास
- मेवाड- उदयपुर, चित्तौडगढ, राजसमन्द, भीलवाडा |
- मेवाड के प्राचीन नाम –
1. गेंदपाट 2. प्राग्वाट 3. शिवी जनपद
- राजपुताना के सम्पूर्ण इतिहास में यह राजवंश सर्वाधिक गौरवपूर्ण रहा |
- मेवाड ने गुहिल वंश का शासन था |
- गुहिल वंश की स्थापना गुहिल ने 566ई. में की |
- गुहिल वंश की 24 शाखाये थी |
- इनमे से मेवाड के गुहिल सबसे प्रसिद्ध है |
- मेवाड के गुहिल सूर्यवंशी हिन्दू थे |
बप्पा रावल
- मूल नाम – काल भोज
- बप्पा रावल हरित ऋषि का शिष्य था |
- 734ई. में मानगौर्य को हराकर चित्तौड़ पर अधिकार किया |
- राजधानी – नागदा को बनाया |
- नागदा में एकलिंग जी के मंदिर का निर्माण कराया |
- मेवाड के राजा खुद को एकलिंग जी का दिवान मानते है | (दिवान = प्रधानमंत्री)
- बप्पा रावल मुस्लिम सेना को हराते हुए गजनी (अफगानिस्तान) तक चला गया |
- गजनी के शासक स्लिम को हटाकर वहाँ का शासक अपने भांजे को बनाया | और स्वयं सलीम की पुत्री से विवाह करके मेवाड लौटा |
- रावल पिण्डी शहर का नाम बप्पा रावल के नाम पर पड़ा |
- इतिहासकार सी.वी.वैध ने बप्पा रावल की तुलना फ्रांसीसी सेनापति चार्ल्स मार्टेल से की थी |
- मेवाड में सोने के सिक्के चलाये (वजन – 115ग्रेन) |
- उपाधियाँ – हिन्दू सूरज, राजगुरु, चक्कर्वे |
- समाधि – नागदा
अल्लट
- अन्य नाम – आलु रावल
- दूसरी राजधानी – आहड
- आहड में वराह मंदिर (विष्णु भगवान) बनाया था |
- मेवाड में नौकरशाही (प्रशासनिक) व्यवस्था की शुरुआत की |
- अल्लट में हुण की राजकुमारी हरियादेवी से विवाह किया |
जैत्र सिंह – 1213-1250
- भुताला का युद्ध :- 1234ई.
जैत्रसिंह v/s इल्तुतमिश(दिल्ली) विजय
- जैत्रसिंह ने नई राजधानी चित्तौड़ को बनाया |
- भुताला युद्ध की जानकारी जयसिंह सूरी की पुस्तक – हम्मीरमद मर्दन से मिलती है |
- जैत्रसिंह का शासनकाल मध्यकालीन मेवाड का स्वर्णकाल कहा जाता है |
रतनसिंह – 1302-1303
- इनका छोटा भाई – कुम्भकरण
- नेपाल में राणा शाखा का शासन स्थापित किया |
- अ. खिलजी का चित्तौड़ पर आक्रमण – 1303
- आक्रमण के कारण:-
- अ.खिलजी की साम्राज्यवादी नीति |
- चित्तौड़ का व्यापरिक व सामरिक महत्व |
- सुल्तान के लिए प्रतिष्ठा का सवाल |
- मेवाड का बढ़ता हुआ प्रभाव |
- रानी पदमनी की सुन्दरता |
- रानी पदमिनी:-
-सिंहल द्वीप की राजकुमारी | –पिता – गन्धर्व सेन –माता – चम्पादेवी -राघव चेतन ने अलाउद्दीनको पदमिनी की सुन्दरता के बारे में बताया | -1303 में चित्तौड़ में पहला साका हुआ | -रानी पदमिनी ने 1600 महिलाओं के साथ जौहर किया | -रतनसिंह के नेतृत्व में केसरिया हुआ -साका – जौहर + केसरिया | -रतन सिंह के सेनापति – गौर,बादल | -अ. खिलजी ने चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया | -चित्तौड़ का भार अपने पुत्र खिज्र खां को सौंप दिया तथा चित्तौड़ का नाम बदलकर खिज्राबाद कर दिया | -खिज्रखान ने गंभीरी नदी पर पुल का निर्माण करवाया | -खिज्रखान ने चित्तौड़ में एक मकबरे का निर्माण कराया | जिसमे एक फारसी अभिलेख है जिसमे अलाउद्दीन खिलजी को ईश्वर की छाया तथा संसार का रक्षक बताया | -कुछ दिन बाद चित्तौड़ का भार मालदेव सोनगरा को डदे दिया, मालदेव सोनगरा को मूंछाला मालदेव भी कहा जाता है | -रतनसिंह रावल उपाधि का प्रयोग करने वाला अंतिम राजा था |
- पदमावत:- लेखक – मलिक मोहम्मद जायसी – अव्धिमाला में 1540
- मुहणौत नैणसी तथा जैम्स टॉड ने पदमावत की कहानी को स्वीकार किया परन्तु सूर्यमल्ल मिश्रण ने इस कहानी को स्वीकार नही किया |
- अमीरखुसरो :- पुस्तक – ख़जाइन-उल-फुतुह(तारीख –ए-अलाईन)
– इस पुस्तक से अ. खिलजी के राजस्थान के आक्रमणों की जानकारी मिलती है |
- हेमरत्न सूरी :- पुस्तक – गौरा – बादल री चौपाई
हम्मीर – 1326-1364
- बनवीर सोनगरा को हराकर चित्तौड़ पर अधिकार |
- हम्मीर सिसोदा ग्राम का था इसलिए गुहिल वंश की सिसोदिया शाखा का शासन प्रारम्भ हुआ |
- हम्मीर ने राणा उपाधि का प्रयोग किया |
- हम्मीर को मेवाड का उध्दारक कहा जाता है |
- कुम्भलगढ़ प्रशस्ती में हम्मीर को विषमघाटी पंचानन कहा गया है |
- रसिक प्रिया पुस्तक में हम्मीर को वीर राजा कहा गया है |
- हम्मीर ने चित्तौड़ में बरबडी माता (अन्नपूर्णा माता) का मंदिर बनवाया | गुहिल वंश की ईष्ट देवी / आराध्य देवी
- कुल देवी – वाणमाता
- सिसोदा गावँ का संस्थापक – राहप
राणा लाखा – 1326-1364
- जावर में चाँदीकी कहाँ प्राप्त हुई |
- बंजारे ने पिछौला झील का निर्माण करवाया |
- पिछौला झील के पास नटनी का चबूतरा बना हुआ है |
- मारवाड़ के राय चून्डा की बेटी हंसा बाई की शादी मेवाड के राजा राणा लाखा से हुई | इस समय लाखा के पुत्र कुँवर चून्डा ने प्रतिज्ञा की, कि वह मेवाड का राजा नही बनेगा तथा हंसा बाई के होने वाले पुत्र को मेवाड का राजा बनाया जायेगा |
- इसलिए चून्डा को मेवाड का भीष्म कहा जाता है |
- राज्य के त्याग के कारण चून्डा को कई विशेषाधिकार दिए गये –
- मेवाड के 16 ठिकाने में से 4 प्रथम श्रेणी ठिकाने चून्डा को दिए गये, जिनमे सलूम्बर भी था |
- सलूम्बर का सामंत मेवाड के राजा का राजतिलक करेगा |
- सलूम्बर का सामंत मेवाड की सेना का सेनापति होगा |
- राणा की अनुपस्थिति में सलूम्बर का सामन्त राजधानी को संभालेगा तथा सलूम्बर का सामन्त मेवाड के राणा के साथ सभी कागजो पर हस्ताक्षर करेगा |
मोकल – 1421-1433
- पिता – लाखा, माता – हंसाबाई
- सरंक्षक – चून्डा
- हंसाबाई के अविश्वास के कारण चून्डा मालवा चला गया |
- हंसाबाई का भाई रणमल मोकल का सरंक्षक बना |
- गोकल ने एकलिंग जी के मंदिर का परकोटा बनवाया |
- चित्तौड़ में का पुननिर्माण करवाया |
- 1433 में गुजरात के अहमदाबाद ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया तथा जीजवाडा नामक स्थान पर चाचा, मेरा व मध्वा पंवार ने मोकल की हत्या कर दी |
- हरावल:-सेना का अगला भाग – सलूम्बर का सामंत
- चन्दावल:- सेना का पिछला भाग
कुम्भा 1433-1468
- पिता – मोकल, माता – सौभाग्यवती परमार
- सरंक्षक – रणमल
- कुम्भा ने रणमल की सहायता से चाचा, मेरा व मध्वा पंवार की हत्या कर दी |
- मेवाड में रणमल का प्रभाव बढ़ गया तथा उसने सिसोदिया के नेता राघव देव को मरवा दिया |
- हंसा बाई ने चून्डा को मालवा से वापस बुलाया तथा चून्डा ने भारगली की सहायता से रणमल को मार दिया |
- रणमल का बेटा जोधा ने बीकानेर के पास काहुनी गावँ में शरण ली |
- चून्डा ने राठोड़ो की राजधानी मंडौर पर अधिकार कर लिया |
- आवंल- बावल की संधि – 1453:-
-> कुम्भा + जोधा ->मंडौर जोधा को वापस दे दिया गया | ->सोजत को मेवाड व मारवाड़ की सीमा बनाया | ->कुम्भा के बेटे रायमल की शादी जोधा की बेटी श्रंगार कँवर से की |
- सारंगपुर का युद्ध – 1437
->कुम्भा v/s महमूद खिलजी (मालवा) विजय ->युद्ध का कारण – महमूद खिलजी ने मोकल के हत्यारो को शरण दी थी | ->इस युद्ध की जीत में कुम्भा ने चित्तौड़ में विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया |
- चम्पारन की संधि :- 1456
->कुतुबुद्दीन (गुजरात) + महमूद खिलजी (मालवा)| ->उद्देश्य – कुम्भा को हराना |
- बदनौर का युद्ध – 1457:-
->कुम्भा ने मालवा और गुजरात की संयुक्त सेना को हराया | ->कुम्भा ने सहसमल देवड़ा को हराया |
- कुम्भा की सांस्कृतिक उपलब्धियाँ :-
-> संगीत में निपुण -> वीणा बजाते थे | -> कुम्भा के संगीत गुरु – सारंग व्यास -> पुस्तके :- 1. सुधा प्रबन्ध 2.कामराज रतिसार – 7 भाग 3.संगीत सुधा 4.संगीत मीगांसा 5.संगीत राज – 5 भाग :- 1. पाठ्य रत्न कोस 2. गीत रत्न कोस 3. नृत्य रत्न कोस 4. वाघ रत्न कोस 5. रस रत्न कोस
- कुम्भा की टीकाये:-
-> जयदेव की गीत गोविन्द पर रसिक प्रिया नाम से टीका लिखी | -> सारंग धर की संगीत रत्नाकर पर टीका लिखी | -> बाणभट्ट की चण्डी शतक पर टीका लिखी |
- कुम्भा ने 4 नाटको की रचना की |
- कुम्भा मेवाड़ी, मराठी. तथा कन्नड़ भाषा का विद्धमान थे |
- स्थापत्य कला:-
->कुम्भा को राजस्थान की स्थापत्य कला का जनक कहा जाता है | ->कवि राजा श्यामल दास की पुस्तक वीर विनोद के अनुसार कुम्भा ने मेवाड के 84 किलो में से 32 किलो का निर्माण करवाया |
- कुम्भलगढ़:-
->राजसमंद में ->वास्तुकार – मंडन ->इस किले को मेवाड – मारवाड़ का सीमा प्रहरी कहा जाता है | ->इस किले का सबसे ऊँचा स्थान कटारगढ़ कहा जाता है | ->यह कुम्भा की आँख कहा जाता है |
- कुम्भलगढ़ प्रशस्ति का लेखक महेश था |
-इस प्रशस्ति में कुम्भा को धर्म एवं पवित्रता का अवतार बताया है | -राणा हम्मीर को कुम्भलगढ़ प्रशस्ति में विसमघाटी पंचानन कहा है |
- अचलगढ़ :-
->सिरोही ->कुम्भा ने 1452ई. में पुन निर्माण करवाया |
- बसंत गढ़ (बसंती किला ):-
->सिरोही
- मचान किला :-
->गेर जनजाति को नियंत्रित करने हेतु |
- भोमट किला :-
->भील जनजाति को नियंत्रित करने हेतु
मंदिर :-
- कुम्भश्याम मंदिर :– तीन जगह पर बनवाये
->चित्तौड़गढ़ ->कुम्भलगढ़ ->अचलगढ़
- श्रंगार चंवरी मंदिर (शांति नाथ जैन मंदिर)
->वेला भण्डारी ने चित्तौड़ में बनवाया |
- रणकपुर जैन मंदिर :-
->1439 में धरणकशाह ने ->इनमे चौमुखा मंदिर प्रसिद्ध है | वास्तुकार – दीपक ->इसमें आदिनाथ (ऋषभदेव) की मूर्ति है | ->इस मंदिर में 1444 स्तम्भ है ->इसे स्तम्भों का अजायबघर कहते है |
- विजय स्तम्भ:-
->अन्य नाम – कीर्ति स्तम्भ -भारतीय मूर्तिकला का विश्व कोष -विष्णु ध्वज -गरुड ध्वज -मूर्तियों का अजायबघर ->यह 9 मंजिला इमारत है | ->लम्बाई -122 फीट, चौड़ाई – 30फीट ->8वी मंजिल पर कोई मूर्ति नही है | ->3 वी मंजिल में 9 बार अल्लाह, अरबी भाषा में लिखा है | ->वास्तुकार – जैता, पूजा, नापा, पौमा | ->कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति का लेखक – अत्रि व महेश | ->महाराणा स्वरुप सिंह ने इसका पुननिर्माण करवाया था | ->प्रतीक चिन्ह – 1. राजस्थान पुलिस 2. RBSE 3.अभिनव भारत (वीर सावरकर का क्रान्तिकारी संगठन) ->विजय स्तम्भ राजस्थान की पहली इमारत है, जिस पर डाक टिकट जारी किया गया | ->जेम्स टॉड ने इसकी तुलना कुतुबमीनार से की | ->फर्ग्यूसन ने इसकी तुलना रोम के टार्जन टावर से की |
- जैन कीर्ति स्तम्भ :-
->12वी शताब्दी में जैन व्यापारी जीजाशाह बघेरवाल ने बनाया था | ->यह चित्तौड़ के किले में 7 मंजिला ईमारत है | ->यह भगवान आदिनाथ को समर्पित है | इसलिए इसे आदिनाथ स्तम्भ भी कहते है|
- कुम्भा के दरबारी विध्दान :-
- कान्ह व्यास – एकलिंग महाकाव्य
-> एकलिंग महाकाव्य का पहला भाग, राज वर्णन कुम्भा ने लिखा | 2. मेहाजी – तीर्थमाला 3. मंडन – 1. वास्तुकार 2. देवमूर्ति प्रकरण 3. राज वल्लभ 4. रूप मंडन – मूर्तिकला की जानकारी 5. कोदंड मंडन – धनुस निर्माण की जानकारी
- नाथा – वास्तु मंजरी
– यह मंडन का भाई था |
- गोविन्द – 1. द्वार दीपिका
2. उध्दार धोरिणी 3. कलानिधि – शिखर निर्माण की जानकारी 4. सार समुच्चय – आयुर्वेद की जानकारी ->यह मंडन का बेटा था |
- रमाबाई :- – मुम्भा की पुत्री
->पिता की तरह संगीत में रूचि | ->उपाधि – वागीश्वरी | ->रमाबाई को जावर परगना दिया गया |
- हीरानन्द मुनि :- कुम्भा के गुरु
- तिला भट्ट:-
->कुम्भा के जैन विद्धान :- 1. सोमदेव सूरि 2.सोमसुन्दर सूरि 3. जय शेखर 4.भुवन कीर्ति ->कुम्भा ने जैनों से तीर्थ यात्रा कर समाप्त कर दिया था | ->कुम्भा की उपाधियाँ:- 1. हिन्दू सुरताण 2. अभिनव भरताचार्य – संगीत से 3. राणा रासो – साहित्य 4. हाल गुरु – पहाड़ी किले जीतने के कारण 5.चाप गुरु – धनुर्धर 6. परम भागवत – गुप्त वंश उपाधि 7. आदि वराह – गुर्जर प्रतिहार उपाधि ->कुम्भा की हत्या, उसके बेटे उदा ने कुम्भलगढ़ किले में की थी | रायमल 1473-1509
- एकलिंग मंदिर का वर्तमान स्वरुप बनवाया |
- रानी श्रंगार कँवर ने घोसुण्डी में बावड़ी का निर्माण करवाया |
=>धोसुण्डी अभिलेख :- ->यह दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व का अभिलेख है | ->वैष्णव धर्म की जानकारी देने वाला राजस्थान का प्राचीनतम अभिलेख | ->इसके अनुसार राजा सर्वतात् ने अश्वमेघ यग्य का आयोजन करवाया | =>पृथ्वीराज :- ->यह रायमल का बेटा है | ->इसे उड़ना राजकुमार कहा जाता है | ->अपनी रानी तारा के नाम पर अजमेर दुर्ग का नाम बदलकर तारागढ़ कर दिया | ->कुम्भलगढ़ में 12 खम्भों की छतरी | =>जयमल :- ->रायमल का बेटा | ->सोलंकियों से लड़ता हुआ मारा गया | राणा सांगा / संग्राम सिंह 1509-1528
- पिता – रायमल
- अपने भाइयो से विवाद होने का वाद श्रीनगर (अजमेर) के कर्मचन्द पंवार के पास शरण ली |
सांगा v/s इब्राहिम लोदी (दिल्ली) 1.खातोली (कोटा) युद्ध (1517) 2.बाड़ी (धौलपुर) युद्ध (1518)
- दोनों में सांगा की विजय हुई |
सांगा v/s महमूद खिलजी – II (मालवा) ->गागरोण का युद्ध – 1519 ->सांगा जीत गये | ->इस समय गागरोण (झालवाड) का किला चन्देरी के राजा में दिनी राय के पास था | ->हरिदास चारण ने महमूद खिलजी–II को पकड़ा इसलिए सांगा ने उसे 12गावँ दिए | ->राणा सांगा ने राज. के सभी राजाओ को पत्र लिखा | तथा बाबर के खिलाफ सहायता की मांग की | (पाती – परवन) ->आगेर – पृथ्वीराज | ->मारवाड़ – मालदेव (राजा – गंगा)| ->बीकानेर – कल्याणमल (राजा – जैतसी) | ->मेड़ता – वीरमदेव | ->सिरोही – अखेराज देवड़ा ->ईडर – भारमल ->वागड – उदयसिंह ->देवलिया(प्रतापगढ़) – बाघ सिंह ->सलूम्बर – रतनसिंह चूण्डावत ->सादडी – झाला अज्जा ->मेवात – हसन खां मेवाती ->अफगानी – महमूद लोढ़ी(इब्राहिम लोदी का भाई) ->बाबर ने जीत के बाद गाजी की उपाधि धारण की | ->सांगा के घायल होने के बाद झाला अज्जा ने युद्ध का नेतृत्व किया | खानवा युद्ध के कारण :- 1. महत्वकांक्षाओ का टकराव | 2. राजपूत – अफगान गठबंधन | 3. सांगा ने दिल्ली के आस पास के क्षैत्रो पर अधिकार कर लिया था | 4. बाबर ने सांगा पर वादा तोड़ने का आरोप लगाया | सांगा की हार के कारण :- 1. सांगा की सेना में एकता की कमी ->सांगा की सेना अलग – अलग सेनापतियो के नेतृत्व में लड़ रही थी | 2. बाबर का तोपखाना | 3. बाबर की तुलुगमा युद्ध पद्धति | 4. सांगा ने बाबर को युद्ध की तैयारी का पर्याप्त समय दे दिया | 5. सांगा खुद युद्ध के मैदान में चले गये | 6. सांगा के साथियों ने सांगा से विश्वश्घात किया तथा युद्ध के दौरान बाबर से मिल गये | ->जैसे – रायसीन का सलहदी तवर ->नागौर के खान जादे मुस्लिम 7. सांगा की सेना ने हाथियों का प्रयोग किया जबकि बाबर की सेना ने घोड़ो का प्रयोग किया | 8. मुगल सैना ने राजपूत सैना की अपेक्षा हल्के हथियारों का प्रयोग किया | खानवा युद्ध के परिणाम :- 1. अफगानों तथा राजपूतो को हराने के बाद बावर के लिए भारत में राज करना आसान हो गया | 2. खानवा अंतिम युद्ध था जिसमे राज. के राजपूतो राजाओ में एकता देखी गई | 3. सांगा अंतिम राजपूतो राजा था जिसने दिल्ली को चुनौती दी थी | 4. सांगा के बाद बड़े हिन्दू राजा नही बचे, जिससे हिन्दू संस्कृति को नुकसान पहुचा | 5. राजपूतो की सामरिक कमजोरिया उजागर हो गई | 6. खानवा युद्ध के बाद मुगलों की राजपूतो के प्रति भविष्य की नीति निर्धारित हुई | -> कालांतर में अकबर ने मित्रता की नीति अपनाई | -> बसबा – यहाँ पर घायल सांगा का इलाज किया गया | -> ईरिच (M.P) – यहाँ पर सांगा को जहर दिया गया | -> काल्पी – सांगा की मृत्यु | -> माण्डलगढ़ – सांगा की छतरी | सांगा की उपाधियाँ :- 1. हिन्दुपती 2. सैनिको का भग्नावशेज (80 घाव)
- बाबर नामा के आनुसार सांगा के दरबार में –
-> 7 – राजा थे | -> 9 – राव थे | -> 104 – सरदार थे |
- सांगा के बड़े बेटे भोजराज की शादी मीराबाई से हुई |
- सांगा की मृत्यु के बाद रतनसिंह मेवाड का राजा बना | वह बूंदी के सूरजमल के खिलाफ लड़ता हुआ मारा गया |
विक्रमादित्य 1531-1536
- पिता – सांगा, माता – कर्मावती (सरंक्षिका) |
- 1583 ई. में गुजरात के बहादुरशाह ने मेवाड पर आक्रमण किया | कर्मावती ने रणथम्भौर का किला देकर संधि कर ली |
- 1534-35 में बहादुर ने मेवाड पर दुबारा आक्रमण किया | कर्मावती ने मुगल बादशाह हुमायु को राखी भेजी तथा सहायता की मांग की |
- 1535 में चित्तौड़ का दूसरा साका हुआ |
-> रानी कर्मावती ने जौहर किया | -> देवलिया के बाघ सिंह के नेतृत्व में केसरिया हुआ |
- बनवीर को मेवाड का प्रशासक बनाया गया |
- बनवीर उड़ना राजकुमार पृथ्वीराज की दासी का पुत्र था |
- बनवीर ने विक्रमादित्य की हत्या कर दी |
- पन्ना धाय ने अपने पुत्र चन्दन का बलिदान देकर उदयसिंह को बचा लिया | पन्ना धाय तथा उदयसिंह ने कुम्भलगढ़ में आशा देवपुरा के पास शरण ली |