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राजस्थान: परिचय ऐतिहासिक अभिलेखीय स्त्रोत शिलालेख ताम्रपत्र, पुराभिलेख REET | PATWAR

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प्राचीन काल मे वर्तमान राजस्थान एक भौगोलिक इकाई के रूप मे नहीं था।
सम्पूर्ण राजस्थान अलग अलग प्रदेशों मे बंटा हुआ था जो भिन्न नामों से जाने जाते थे यथा :-

  1. बीकानेर व जोधपुर – जांगल देश
  2. जयपुर व टोंक – विराट प्रदेश
  3. डूँगरपुर व बाँसवाड़ा – वागड़
  4. कोटा व बूँदी – हाड़ौती
  5. उदयपुर राज्य – शिवि

कालातंर मे चितौड़ व मेवाड कहलाया

  1. जोधपुर राज्य – मरू, मरूवार व मारवाड़
  2. जैसलमेर – माड
  3. जालौर – सुवर्णगिरि
  4. गंगानगर व निकटवर्ती क्षैत्र – यौद्धेय
  5. आबू व निकटवर्ती क्षैत्र – चंद्रावती
  6. बाड़मेर – श्रीमाल
  7. भरतपुर,धौलपुर व करौली – शूरसेन
  8. झालावाड़ – मालवदेश

राजस्थान के लिऐ सर्वप्रथम `राजपुताना` शब्द का प्रयोग जाॅर्ज थाॅमस ने 1800 ई॰मे किया था।

जार्ज थाॅमस आयर लैण्ड के निवासी थे। थाॅमस सर्वप्रथम शेखावाटी क्षै़त्र मे आया, तथा अन्तोलगत्व at the last बीकानेर मे उनका देहान्त हो गया।

ब्रिटिशकाल/मध्यकाल मे राजस्थान को राजपुताना कहा जाता था।

जाॅर्ज थाॅमस ने ही सर्वप्रथम `राजपूताना` शब्द का प्रयोग कि सह बात विलियम फ्रेंकालिन ने 1805 मे अपनी पुस्तक `मिल्ट्री मेमावर्स ऑफ जाॅर्ज थाॅमसष् मे वर्णित की।

`मिल्ट्री मेमायर्स आफ जाॅर्ज थाॅमस` का प्रकाशन लाॅर्ड बेलेजली के द्वारा किया गया।

कर्नल जेम्स टाॅड ने अपनी पुस्तक `द एनाल्स एण्ड एन्टीक्वीटीज ऑफ राजस्थान` मे 1829 मे सर्वप्रथम राजस्थान या रजवाड़ा शब्द का प्रयोग किया।

कर्नल जेम्स टाॅड ने अपनी पुस्तक `द एनल्स एण्ड एन्टीक्वीटीज ऑफ राजस्थानष् को अपने गुरू जेनयति ज्ञान चंद्र को समर्पित की।

`द एनल्स टाॅड एण्ड एन्टीक्वीटीज ऑफ राजस्थान` का सर्वप्रथम हिन्दी अनुवाद पं॰ गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने किया।

जेम्स टाॅड ने अपनी एक ओर पुस्तक `ट्रेवल इन वेस्टर्न इण्डिया/पश्चिमी भारत की यात्रा` मे राजस्थान के पर्यटन के बारे मे लिखा है।

टाॅड ने `ट्रेवल इन वेस्टर्न इण्डिया` मे राजपूती परम्पराओं, अंध विश्वासों, आदिवासियों के जीवन, मन्दिरों, मूर्तियों आदि की व्याख्या की है।

1818 ई॰ मे कर्नल टाॅड मेवाड़ व हाड़ौती के पोलिटिक्ल एजेन्ट भी रहे, बाद मे सिरोही व मारवाड़ का पदभार भी उनके पास आ गया।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से राजस्थान का इतिहास लिखने वाले प्रथम इतिहास कार कर्नल जेम्स टाॅड ही थे।

  • कर्नल टाॅड की सेवाओं से प्रभावित होकर उदयसिंह के महाराज भीम सिंह ने अजमेर के गौव बोरस वाड़ा का नाम बदलकर टाॅडगढ रख दिया।
  • टाॅड ने अनेक मंदिर स्थित होने के कारण आबू पर्वत को हिन्दू आॅलम्पस कहा।
  • टाॅड ने राजस्थान की सबसे ऊँची चोटी गुरू शिखर को सन्तो का शिखर कहा।
  • रायथान का शाब्दिक अर्थ है शासकों का निवास स्थान। टाॅड ने पुरानी बहियों मे राजस्थान के लिऐ रायथान शब्द का प्रयोग किया है।
  • कर्नल टाॅड ने ईग्ंलैण्ड जाते समय मनमोरी शिलालेख को समुन्द्र मे फैंक दिया था।
  • रामायण मे राजस्थान के लिऐ मरूकान्ताय शब्द का प्रयोग किया गया है।
  • 26 जनवरी 1950 राजपूताना शब्द की जगह राजस्थान कर दिया गया।
  • राजस्थान अपने वर्तमान स्वरूप मे 1 नवम्बर 1956 ई॰ को आया।
  • 1 नवम्बर `राजस्थान स्थापना दिवस` के रूप मे मनाया जाता है तो 30 मार्च प्रति वर्ष `राजस्थान दिवस` के रूप मे मनाया जाता है।
  • घोसूण्डी शिलालेख द्वितीय शताब्दी ई॰पू॰का है जिसकी भाषा संस्कृत व लिपि ब्राही हैं। यह लेख भागवत धर्म के प्रचार, वासुदवे की मान्यता व अश्वमेघ यज्ञ पर प्रकाश डालता है।
  • नंदसा यूप – स्तम्भ लेख ; यह भीलवाड़ा जिले मे है। तालाब मे स्थित यह गोल स्तम्भ पानी सूखने पर ही नजर आता है पौराणिक यज्ञों का महत्व बताता है।
  • बरनाला लेख, जयपुर – यह भगवान विष्णु से सम्बन्धित है जिसमे विष्णु जी की वन्दना की गई है।
  • बड़ली शिलालेख, गाँव बड़ली अजमेर – राजस्थान का सबसे प्राचीन शिलालेख जिसकी लिपि ब्राही है।
  • बसंतगढ़ का लेख-गाँव बंसतगढ सिरोही: यह लेख बताता है कि राजा वर्मलाल अर्बूद देश का स्वामी था। यह सामन्त प्रथा पर भी प्रकाश डालता है।
  • सांमोली शिलालेख-गाँव सामोली। यह लेख मेवाड़ के गुहिल वंश के राजा शीलादित्य के साथ-साथ तात्कालिक समय मे मेवाड़ की आर्थिक व साहित्यिक स्थिति को भी उजागर करता है।
  • शंकरघट्टा का लेख – इसमे शिव वंदना की गई है। यह राजा मान भंग मनमोरी का वर्णन करता है। यह वही मनमोरी है जिसका वर्णन कर्नल टाॅड ने किया है।
  • मनमोरी का लेख – यह लेख चित्तौड़ के पास मानसरोवर झील के तट पर एक स्तम्भ पर लिखा हुआ जेम्स टाॅड को मिला था। इंग्लैंड जाते समय टाॅड ने इसे भारी होने के कारण समुन्द्र मे फैंक दिया था।
  • कणसवा का लेख – यह लेख गाँव कणसवा कोटा के शिवालय मे लगा हुआ है। इससे मौर्य वंशी राजा धवल के विषय मे जानकारी मिलती है।
  • मण्डोर का शिलालेख – यह लेख मूल रूप से मंडोर के विष्णु मंदिर मे स्थापित है तथा प्रतिहार वंश के सम्बन्ध मे महत्वपूर्ण जानकारी देता है।
  • घटियाला का शिलालेख – यह जोधपुर के पास एक जैन मंदिर मे स्थापित एक स्तम्भ का लेख है जिसे माता की साल कहा जाता है। इसमे कक्कूर प्रतिहार की प्रशंसा की गई है।
  • चित्त्त्तौड़ का लेख – प्रारम्भ मे यह लेख चित्त्त्तौड़ मे था, परन्तु अब वहाँ नही है। इससे राजा भोज व उसके उत्तराधिकारियों के सम्बन्ध मे जानकारी मिलती है।
  • नाथ प्रशस्ति – एकलिंग जी – यह एकलिंग जी के मंदिर से ऊँचाई पर स्थित लकूलिश मंदिर मे स्थापित है। इससे पाशुपत योग साधना करने वाले साधुओं के विषय मे जानकारी मिलती है। इस प्रशस्ति के रचयिता वेदाग मुनि के शिष्य आम्र कवि थे।
  • हर्षनाथ के मंदिर की प्रशस्ति – यह प्रशस्ति शेखावाटी के हर्षनाथ मंदिर मे स्थित है। इससे साँभर के राजा विग्रहराज के साथ साथ चैहानों के विषय मे भी जानकारी मिलती है। इसमे वागड़ के लिऐ वार्गट शब्द का प्रयोग किया गया है।
  • चित्त्त्तौड़ का कुमार पाल शिलालेख – यह लेख चित्त्त्तौड़ के समिधेश्वर मंदिर मे स्थापित है। इस लेख चालुक्य वंश का यशोगान किया गया है। इसके रचनाकार रामकीर्ति थे। जो एक दिगम्बर विद्वान थे।
  • बिजौलिया का लेख – यह लेख बिजौलिया ख्जिला भीलवाड़ा, के पाश्र्वनाथ मंदिर मे स्थित है। इसके रचनाकार दिगम्बर जैन श्रावक लोलाक है। इससे साँभर व आजमेर के चैहान शासकों के विषय मे काफी जानकारी मिलती है। इससे कई प्राचीन स्थानों भी मिलती है यथा जाबालिपुर ख्जालौर, नडडूल ख्नाडौल, इत्यादि। इससे बिजौलिया के आस पास के क्षैत्र को उत्त माद्री कहा गया है जिसे आज उपरमाल कहा जाता है।

लोलाक ने इसे लगवाया था जबकि वास्तविक रचनाकार इस प्रशस्ति के गुणभद्र थे।

  • अचलेश्वर लेख – यह लेख आबू के पास एक मठ मे लगाया गया था। इसमे बापा से लेकर समर सिंह के काल की वंशावली दी गई है। इस प्रशस्ति के रचनाकार वेद शर्मा नागर था।
  • कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति – इससे वप्पा, हमीर व कुम्भा के विषय मे जानकारी मिलती है। इसमे कुछ ग्रन्थों का उल्लेख भी है यथा-चण्डीशतक,गीत गोविन्द इत्यादि।
  • कुम्भलगढ की प्रशस्ति – इससे मेदपाट व चित्तौड़ की भौगालिक, सामाजिक, धार्मिक व सांस्कृतिक स्तिति का पता चलता है।
  •  बीेकानेर की प्रशस्ति – यह प्रशस्ति बीकानेर के दुर्ग मे स्थापित है जो बीकानेर नरेश रायसिंह के समय की है। इसकी भाषा संस्कृत है।
  • आमेर का शिलालेख – इसमे मुगलों व राजपुतों के मध्य निकटता को दिखाया गया है। कछवाह वंश को `रघु वंश तिलक` कहा गया है तथा पृथ्वीराज के पुत्रपीढी के विषय मे भी वर्णन है।
  • वैधनाथ की प्रशस्ति – यह प्रशस्ति गाँव सिसारमा ख्नजदीक उदयपुर, के वैधनाथ महादेव मंदिर मे लगी हुई है। इसमे वर्णित है कि कैसे बापा ने हरीत ऋषि की अनुकम्पा से राज्य प्राप्त किया। इस प्रशस्ति के लेखक रूप भट्ट था।
  • अजमेर का लेख – यह अजमेर के अढाई दिन के झोपडे़ मे स्थित है जिसमे अबूबक्र नामक व्यक्ति का उल्लेख है।
  • पुष्कर के जहाँगिरी महल का लेख – इसमे राणा अमरसिंह द्वारा राज्य पर विजय के साथ साथ सम्राट जहाँगीर द्वारा पुष्कर मे राजप्रसाद बनाऐ जाने का उल्लेख है।
  • मकराना की बावड़ी का लेख – यह मकराना नागौर की बावडी मे लगा हुआ लेख है जो तात्कालिक समय मे प्रचलित जाति-प्रथा के विषय मे बताता है।
  • ईदगाह मेडता का लेख – इसमे वर्णित है कि इसके निर्माता फराश्त खाँ व मिस्त्री है जिन पर जोधपुर नरेश जसवंत सिंह की अनुकम्पा रही है।
  • आहड़ के ताम्रपात्र  1206 ई॰ – इसमे गुजरात के मूलराज से लेकर भीमदेव तक के सोलंकी राजाओं की वंशावली दी गई है।
  • खेरोद ताम्रपात्र  1437 ई॰ – इसमे एकलिंग जी के मंदिर मे कुंभा के प्राचश्चित, प्रचलित मुद्रा व तात्कालिक धार्मिक स्थिति की जानकारी मिलती है।
  • चीकली ताम्र पात्र  1483 ई॰ – इससे किसानों से वसूल होने वाले विविध लाग-बागों की जानकारी मिलती है।
  • पुर का ताम्र-पात्र  1535 ई॰ – इस ताम्र-पात्र से जोहर-प्रथा की जानकारी मिलती है तथा साथ ही चित्तौड़ के द्वितीय शाके के समय का निश्चित पता लगता है।
  • ओहया बही – इससे जोधपुर के शासकों द्वारा जारी आदेशों का पता चलता है।
  • अर्जी बही – यह अर्जियों का रिकाॅर्ड रखने के काम आती थी।
  • हकीकत बही – राजाओं के कार्य, यात्रा, यातायात के साधन इत्यादि की जानकारी का स्त्रोत।
  • ब्याह बही – राज परिवार के वैवाहिक संबंधो की जानकारी का स्त्रोत।
  • कमठाना बही – इसमे राजकीय महलों पर होने वाले खर्च को लिखा जाता था।
  • खरीता – शासकों के मध्य होने वाले पत्र-व्यवहार।
  • पखाना – शासक द्वारा अधीनस्थ कर्मचारियों को भेजे जाने वाले पत्र।
  • वकील रिपोर्टस – मुगल दरबार मे जयपुर नरेश द्वारा नियुक्त राजदूत द्वारा नरेश को दरबारी संबधी दी जाने वाली सम्पूर्ण जानकारी।
  • खतूत – मराठा, देशी शासक, मुगल राजाओं के मध्य होने वाला शासन संबंधी पत्राचार।
  •  मंसूर – एक प्रकार का शाही आदेश जो राजा की उपस्थिति मे शहजादें द्वारा जारी किया जाता था। मुगल इतिहास मे यह एक बार ही हुआ था।
  • पड़ाखा बहियाँ – जिन अभिलेखों से उदयपुर राज्य के सालाना आय-व्यय के संबंध मे पूरी जानकारी मिलती है, उन्हे पड़ाखा बहि कहा जाता है।
  • वाक्या – इसमे राजा की व्यक्तिगत, राज कार्य संबंधी गतिविधियों व राज परिवार की सामाजिक रस्म, व्यवहार आदि जानकारी मिलती है।
  • ख्यात – क्रमबद्ध तरीके से इतिहास लेखन यथा-बाकीदास री ख्यात।
  • वार्ता: आपसी संवाद।
  • कत्ता: राजकीयं विवरण ।
  • मरसिया: मृत व्यक्ति की याद मे रचित पध।
  • खरीता: अंग्रेजी काल मे शासक द्वारा भेजी जाने वाली योजना/संदेश।
  • नीसाणी: किसी व्यक्ति या घटना की स्तुति कराने वाली रचना।
  • तवारीख: 19 वीं शदी के अंत मे या बाद मे लिखित इतिहास जो कि फारसी की जगह राजस्थानी मे होता था।
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