राजव्यवस्था राजस्थान की, राज्य विधानमंडल एवं मुख्‍यमंत्री REET | PATWAR

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  • सविधान के भाग-6  के अध्याय 3 मे अनुच्छेद 168 से 212 मे विधानमंडल की सम्पूर्ण सरंचनात्मक गठन की जानकारी है।
  • विधानमंडल के दो सदन होते है – 1.विधानपरि‍षद [ उच्च सदन ], एवं 2.विधानसभा [ निम्न सदन ]।
  • संविधान का अनुच्छेद 168 स्पष्‍ट करता है कि प्रत्‍येक राज्य मे विधानमंडल होगा।
  • विधानसभा : अनुच्छेद 170 [1] – संरचना।
  • अनुच्छेद 170 [2] मे वर्णित है कि प्रत्येक राज्य की विधानसभा मे सदस्यों की संख्या उस राज्य की जनसंख्या पर निर्भर है।
  • प्रत्येक राज्य मे सीटों का बँटवारा 1971 की जनगणना के आधार पर किया गया है तथा प्रादेशिक क्षैत्रो मे विभाजन का परिसिमन 2001 के आँकड़ो के आधार पर किया गया है।
  • 84 वें संविधान संशोधन अधिनियम 2002 के अनुसार राज्य विधानसभाओं की संदस्य संख्या 2026 तक के लिऐ निश्चित हो गई।
  • राज्य विधानसभा मे अधिकतम 500 सदस्य व न्यूनतम 60 सदस्य हो सकते है। परन्तु कुछ राज्य न्यूनतम सदस्य संख्या के अपवाद है यथा – गोवा – 40, सिक्किम – 32, मिजोरम – 40, ।
  • भारत के सिर्फ 6 राज्यो मे इस समय विधान – परिषद [उच्‍च सदन/ स्‍थायी सदन ] है –
  • 1.बिहार, 2.उत्‍तर प्रदेश 3.महाराष्‍ट्र 4.प॰ बंगाल 5.कर्नाटक 6.आन्ध्र प्रदेश।
  • आन्ध्रप्रदेश विधान परिषद को समाप्‍त करने हेतू आन्‍ध्रा सरकार ने प्रस्ताव पारित कर दिया।
  • जम्‍मू & कश्‍मीर केन्‍द्र शासित राज्‍य बन गऐ। विधान परिषद समाप्‍त कर दी गई।
  • केरल, कर्नाटक, तमिलनाडू, मध्यप्रदेश इत्यादि ऐसी राज्य है जहाँ विधानसभा मे राज्यपाल एक – एक आंग्ल भारतीय प्रतिनिधि को मनोनित करता है।
  • जिसकी उम्र 18 वर्ष है, ऐसा मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करके MLAs का निवार्चन करते है।
  • 61 वे संविधान संशोधन विधेयक 1989 द्वारा मतदान की उम्र 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई।
  • अनुच्‍छेद 173 मे वर्णित है कि विधानसभा सदस्य बनने के इच्‍छुक उम्‍मीदवार की उम्र न्‍यूनतम 25 वर्ष हो; वह लाभ के पद पर न हो।
  • विधानसभा संदस्य का कार्यकाल शपथ के दिन से लेकर 5 वर्ष होता है। परन्तु विधानसभा किसी कारण वश राज्यपाल पहले भंग कर देता है तो कार्यकाल 5 वर्ष से पूर्व ही समाप्त हो जाता है। आपातकाल मे संसद विधानसभा का कार्यकाल 1 वर्ष ओर बढा सकती है, परन्तु आपातकाल समाप्त होते ही यह अवधि 6 मास से ज्यादा नही हो सकती।
  • विधानसभा सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा वयस्क मताधिकार के आधार पर होता है।
  • राजस्थान मे विधानसभा सदस्यों की संख्या 200 है।
  • अनुसूचित जाति [SC] के लिऐ 34 सीटे व अनुसूचित जनजाति के लिऐ 25 सिटे आरक्षि‍त है।
  • अजा व जजा के लिऐ उनकी जनसंख्या के अनुपात से सदन मे सीटे आरक्षि‍त की गई है। प्रारम्भ मे यह आरक्षण 10 वर्षो के लिए था, परन्तु अब यह आरक्षण 126 वे संविधान संसोधन विधयेक 2019 द्वारा आरक्षण की अवधि 25 जनवरी, 2030 तक बढा दी।
  • अजा / अजजा को आरक्षण संविधान के अनुच्‍छेद 332 के तहत दिया गया है।
  • अनुच्छेद 333 राज्य की विधानसभाओं मे आंग्ल-भारतीय समुदाय हेतू आरक्षण का प्रावधान करता है।
  • अनुच्छेद 170 कहता है कि राज्य विधान सभा मे आंग्ल भारतीय समाज के एक प्रतिनिधि को राज्यंपाल मनोनित करता है।
  • विधानसभा की गणपूति न्यूनतम 10% आवश्यक है। विधानसभा की साल मे दो बैठके अनिवार्य है। दो बैठकों के मध्य अन्तर 6 माह का होना चाहिऐ। विशेष परिस्थि‍ति मे विशेष बैठक भी बुलाई जा सकती है।
  • अनुच्‍छेद 174 (2)(क) – राज्‍यपाल विधानमण्‍डल के किसी भी सदन के सत्र का सत्रावसान कर सकता है।
  • अनुच्‍छेद 174 (2) (ख) – राज्‍यपाल विधानसभा को भंग कर सकता है।
  • अनुच्‍छेद 188 – राज्‍यपाल या उसके द्वारा नियुक्‍त व्‍यक्ति द्वारा विधानमंडल [ विधानसभा + परिषद ] के सदस्‍यों को अनुसूचि‍ 3 मे वर्णित प्रारूप के अन्‍तर्गत शपथ लेनी होती हैं।
  • विधानसभा के अघ्‍यक्ष व उपाध्‍यक्ष को वेतन व भत्‍ते जो कि विधानसभा द्वारा निर्घारित होने है राज्‍य की संचित निधि से मिलते है।
  • विधानसभा सदस्‍य ने जो भाषण सदन मे दिया के विरूद्ध न्‍यायालय मे नहीं जा सकते।
  • विधानसभा सदस्य को सत्र के दौरान 40 दिन पूर्व व 40 दिन बाद तक गिरफ्तार नहीं कर सकते [दीवानी वाद मे]।
  • अनुच्छेद 178 – विधानसभा मे एक अध्यक्ष व एक उपाध्यक्ष होता है जिनका चयन सदस्य गण अपने मे से करते है, तथा सदस्यों द्वारा 14 दिन पूर्व दोनों को सूचना देकर एक प्रस्ताव पारित करके हटाया भी जा सकता है। इनका कार्यकाल विधानसभा के कार्यकाल तक होता है।
  • अध्‍यक्ष उपाध्यक्ष को व उपाध्यक्ष अध्‍यक्ष को त्यागपत्र सौंपता है। इनके वेतन भते राज्य विधान मण्डल द्वारा निर्धारित होते है जो कि राज्य की संचित निधि से दीऐ जाते है।
  • विधानपरिषद: अनु॰169 मे इसका गठन दिया गया है।
  • यह विधान मण्डल का उच्च सदन है जिसके सदस्य MLC कहलाते है।
  • स्थापना/समाप्ति: विधानपरिषद स्थापना या समाप्ति के इच्छुक राज्य को विधानसभा के कुल सदस्यों के पूर्ण बहुमत तथा उपस्थित व मतदान करने वाले सदस्यों के ⅔ बहुमत से प्रस्ताव पारित करके संसद के पास भेजना होता है।
  • विधान परिषद को समाप्त किया जा सकता है पर विघटित [Dissolve] नही [अनु॰169]।
  • अनु॰ 171 [1] – विधानपरिषद मे सदस्यों की संख्या सम्बन्धित राज्य की विधानसभा के ⅓ सदस्य संख्या से ज्यादा नहीं होगी। परन्तु किसी भी दशा मे 40 से कम नहीं होगी।
  • अनु॰ 171 [3] –⅓ सदस्य स्थानीय संस्थाओं से चुने जाते है।
  • ⅓ सदस्य राज्य विधानसभा के निर्वाचक मण्डल से चुने जाते है।
  • ⅟12 सदस्य पंजीकृत स्नातकों द्वारा चुने जाते है।
  • ⅟12 सदस्य प्राध्यापकों द्वारा चुने जाते है।
  • ⅙ सदस्य साहित्य, विज्ञानं, कला, सहकारिता या समाज सेवा मे ख्याति रखने वालों मे से राज्यपाल द्वारा मनोनित किऐ जाते है।
  • सदस्यों का चयन एकल संक्रमण‍ीय मत पद्धति के द्वारा समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर किया जाता है।
  • MLA व MLC को योग्यताऐं समान है; अन्तर यह है कि विधानपरिषद के सदस्य [MLC] की न्यूनतम आयु 30 वर्ष होनी चाहिऐ।
  • विधान परिषद के ⅓ सदस्य प्रत्येक 2 वर्ष बाद सेवा निवृत हो जाते है अर्थात कार्यकाल 6 वर्ष है।
  • विधानपरिषद की बैठक हेतू गणपूर्ति 10 % है।
  • विधानपरिषद की साल मे दो बैठके अनिवार्य है।
  • दो बैठकों के बीच का अन्तर 6 मास से ज्यादा ना हो।
  • विधान परिषद किसी विधेयक को अधिकतम 4 मास तक रोक सकती है। संयुक्त बैठक का कोई प्रावधान नही होता।
  • किसी राज्य का सर्वोच्च विधि अधिकारी महाधिवक्‍ता होता है।
  • अनु॰ 165 [1] – महाधिवक्‍ता वही व्यक्ति बन सकता है जो उच्च न्यायालय मे न्यायाधीश बनने की योग्यता रखता हो।
  • राज्यपाल उसकी नियुक्ति करता है एवं राज्यपाल की इच्‍छापर्यन्त ही वह पद पर बना रह सकता है।
  • वह राज्‍य सरकार का सर्वोच्‍च विधि‍ सलाहकार होता है। वह राज्‍य सरकार की ओर से प्रारम्भि‍क क्षैत्राधि‍कार मे शामिल प्रकरणों [अभि ‍योग] की पेखी करता है।
  • योग्‍यता की बात करे तो जिसने 10 वर्ष तक उच्‍च न्‍यायालय मे अभि‍भाषक के [Lawyer] के रूप मे या 10 वर्ष त‍क न्‍यायिक पद पर कार्य किया वही व्‍यक्ति महधि‍वक्‍ता बन सकता है। उसे शपथ राज्‍यपाल दिलाता है।
  • उसका कार्यकाल राज्‍यपाल के प्रसादपर्यन्‍त होता है। वह अपना त्‍यागपत्र राज्‍यपाल को देता है।
  • अनु॰ 177 कहता है कि वह विधानमण्‍डल की किसी भी कार्यवाही मे भाग ले सकता है, बोल सकता है, परन्‍तु मतदान नहीं कर सकता।
  • इस समय राजस्‍थान के महाधि‍वक्‍ता एम.एस. सिधंवी है।
  • राज्‍य की प्रथम विधानसभा का संचालन 29 मार्च 1952 से 23 मार्च 1957 तक हुआ।
  • राजस्थान की पहली विधानसभा के चुंनाव 1952 मे हुऐ। संदस्य संख्या थी 160 ।
  • प्रथम विधानसभा के समय मे 17 क्षैत्रो उपचुनाव हुऐ।
  • प्रथम बैठक – 31 मार्च 1952
  • प्रथम अध्यक्ष – नरोतम लाल जोशी
  • विपक्ष के नेता – कुँवर जसवंत सिंह
  • यशोदा देवी [प्रजा समाजवादी पार्टी] राज्य की पहली महिला विधायक थी जिसने नवम्बर 1953 में बाँसवाडा उपचुनाव जीता।
  • 15 वीं विधानसभा मे महिला विधायकों की संख्या है – 25
  • इस समय राजस्थान विधानसभा के अध्यस [Speaker] है – सी.पी.जोशी।
  • सरकारी मुख्य सचेतक है – महेश जोशी
  • सदन के नेता है – अशोक गहलोत।
  • प्रतिपक्ष नेता है – गुलाब चंद कटारिया
  • मुख्‍यमंत्री: संविधान के भाग 6 के अनु॰ 163 मे मंत्रीपरिषद का प्रावधान है।
  • मुख्‍यमंत्री संसदीय शासन व्‍यवस्‍था मे राज्‍य का वास्‍तविक प्रावधान होता है।
  • अनु॰ 164 – मुख्‍यमंत्री की नियुक्ति राज्‍यपाल करता है। अन्‍य मंत्रियों की नियुक्ति मुख्‍यमंत्री के परामर्शानुसार राज्‍यपाल करता है।
  • यदि किसी भी दल को निर्वाचन मे बहुमत नही मिला हो तो बहुमत साबित करने वाले नेता को मुख्‍यमंत्री बनाना राज्‍यपाल का स्‍व – विवेकीय अधिकार [Discretionary Power] है।
  • एस.आर.बोम्‍मई बनाम भारत संध, 1994 के वाद मे निर्णय दिया गया कि बहुमत का फैसला सदन मे होना चाहिऐ न कि राजभवन मे।
  • कोई व्‍यक्ति बिना विधानमंडल का सदस्‍य बने अधिकतम 6 मास तक मुख्‍यमंत्री रह सकता है उसके बाद तो उसे विधानमंडल का सदस्‍य बनना पड़ेगा।
  • सभी मंत्री व्‍यक्गित रूप से राज्‍यपाल के प्रति व सामूहिक रूप से विधानसभा के प्रति उत्‍तरदायि होते है। जिनका उल्‍लेख क्रमश: 164 (1) व 164 (2) मे है।
  • अनु॰ 164 (3) – अनुसूचि 3 मे विदित प्रारूप के अनुसार राज्‍यपाल सभी मंत्रियों को पद व गोपनि‍यता की शपथ दिलाता है।
  • मुख्‍यमंत्री व मंत्रिपरिषद का कार्यकाल निश्चित नही होता क्‍योंकि वे राज्‍यपाल के प्रसादपर्यन्‍त ही पद पर बने रहते है।
  • अनु॰ 164 (4) – कोई भी मंत्री विधानमंडल का सदस्‍य बने बिना अधि‍कतम 6 माह तक ही मंत्री रह सकता है फिर उसे सदस्‍य बनना होगा।
  • अनु॰ 164 (5) – मंत्रियों के वेतन एवं भत्‍ते विधानमंडल द्वारा निर्धारित किऐ जाते है।
  • मुख्‍यमंत्री मंत्रियों के मध्‍य विभागों का विभाजन करता है।
  • मतभेद होने पर राज्‍यपाल को बोलकर किसी भी मंत्री को बर्खास्त करवा सकता है।
  • मुख्‍यमंत्री मंत्रीमंडल की बैठकों की अध्‍यक्षता करता है।
  • मुख्‍यमंत्री सभी मंत्रियों के कार्य मे स‍हयोग करता है वहीं उन्‍हे निर्देश भी देता है।
  • यदि मुंख्‍यमंत्री ने त्‍यागपत्र दे दिया तो समझो पूरीं मंत्री परिषद भंग।
  • मुख्‍यमंत्री मंत्रियों व राज्‍यपाल के बीच संवाद का माध्‍यम है।
  • अनु॰ 167 – मे मुख्‍यमंत्री के कर्तव्यों का उल्‍लेख है अर्थात राज्‍यपाल के जानकारी मांगने पर उसे देनी होगी।
  • मुख्‍यमंत्री राज्‍यपाल को विधानसभा का सत्र बुलाने व स्‍थगित करने का परामर्श देता है।
  • मुख्‍यमंत्री राज्‍यपाल को विधानसभा विधटित करने की सलाह देता है।
  • मुख्‍यमंत्री राज्‍य योजना बोर्ड का अध्‍यक्ष होता है।
  • मुख्‍यमंत्री क्षैत्रीय परिषद का क्रमानुसार उपाध्‍यक्ष बनता है।
  • वह अन्‍तर्राज्‍यीय व राष्‍ट्रीय विकास परिषद का सदस्‍य होता है।
  • राज्‍य के असैनिक पदाधि‍कारियों के स्‍थानातंरण मुख्‍यमंत्री के आदेश पर ही होते है।
  • यदि राज्‍यपाल राष्‍ट्रपति को रिपोर्ट करे कि राज्‍य मे शासन संवैधानिक तरिके से नही चल रहा है तो अनु॰ 356 के अन्‍तर्गत विधानसभा भंग कर राष्‍ट्रपति शासन लगाया जा सकता है।
  • यदि विधानसभा मे मुख्‍यमंत्री के विरूद्ध अविश्‍वास प्रस्‍ताव [Motion of no confidence] पारित हो गया लेकिन फिर भी मुख्‍यमंत्री त्‍यागपत्र नहीं दे रहे तो राज्‍यपाल उसे बर्खास्‍त कर सकता है।
  • अनु॰ 164 [1ए] – 91 वें संविधान संशोधन अधि‍नियम, 2003 के अनुसार राज्‍य विधानसभा मे मंत्रियों की संख्‍या उस राज्‍य की विधानसभा के सदस्‍यों की संख्‍या का 15% से अधिक नही हो सकता जैसे राजस्‍थान विधानसभा मे MLAs है-200 ; अत: यहां मंत्रीयों की संख्‍या होगी 200×15÷100 = 30 ।
  • किसी भी दशा मे राज्‍य विधानसभा मे मंत्रीयों की संख्‍या 12 से कम नही हो सकती।
  • केन्‍द्र शासित प्रदेश दिल्‍ली व पुदुच्‍चेरी मे मंत्रीयों की संख्‍या विधानसभा सदस्‍यों की कूल संख्‍या का 10 % से अधिक नही होना चाहिऐ।
  • कम से कम मंत्री 7 होने चाहिऐ।
  • मंत्रीपरिषद मे तीन प्रकार के मंत्री होते है-

1.केबीनेट मंत्री – प्रभम श्रैणी

2.राज्‍य मंत्री – स्‍वतंत्र प्रभार व सहायक

3.उपमंत्री – प्रशिक्षु [निम्‍नतम स्‍तर]

  • केबीनेट शब्‍द का उल्‍लेख सिर्फ अनुच्‍छेद 352 मे है जिसे 44 वे संविधान संशोधन, 1978  द्वारा जोडा गया था।
  • संसदीय सचिव – एक औपचारिक मंत्री होता है।
  • इसकी नियुक्ति व शपथ दोनो कार्य मुख्‍यमंत्री द्वारा किऐ जाते है।
  • राजस्‍थान के प्रथम मुख्‍यमंत्री – हिरालाल शास्‍त्री ।
  • केन्‍द्र सरकार द्वारा नियुक्‍त – सी.एस. वेकेटाचारी ।
  • प्रथम निर्वाचन मुख्‍समंत्री – टीकाराम पालीवाल
  • सर्वाधिक अवधि‍ तक रहने वाला मुख्‍यमंत्री – मोहनलाल सुखाड़ि‍या
  • मुख्‍समंत्री जिसकी मृत्यु कार्यकाल के दौरान हुई – बरकतुल्‍ला खान
  • पहले गैर – कोगेंसी मुख्‍यमंत्री थे- भैरोसिंह शेखावत [1977-80]
  • पहले अनुसूचित जाति के मुख्‍यमंत्री – जगंन्‍नाथ पहाड़ि‍या
  • सबसे कम अवधि [16 दिन] के मुख्‍यमंत्री – हीरालाल देवपुरा [1985]
  • 15 वीं विधानसभा [17.12.2018 से चालु] के मुख्‍यमंत्री [कांग्रेस] → अशोक ग‍हलोत
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