राजस्थान के लोक देवी एंव देवता सूचि
- भोमिया जी को भूमि रक्षक देवता कहा जाता है |
- बांस दूगारी [बूंदी] – तेजा जी की कर्मस्थली है |
- जायल / घोडला – गोगा जी के मुस्लिम पुजारी सांप के जहर के तोड़ के रूप में गोबर की राख व गौमूत्र के प्रयोग की शुरुआत तेजाजी ने की |
- पाबू जी ऐसे लोक देवता माने जाते है जिन्होंने अपनी शादी को बीच में ही छोडकर केसर कालमी घोड़ी पर सवार होकर जींदराव खींची से देवल चारणी की गायो को मुक्त करने हेतु लड़ाई लड़ी व वीर गति को प्राप्त हुए |
- बाबा रामदेव ने पोकरण के आस पास के क्षैत्र में आतंक के पर्याय बन चुके भैरव राक्षस का नाश किया |
- तेजाजी ने अपने वचन की खातिर जीभ पर सर्पदंश करवाकर प्राण त्याग दिए |
- देव बाबा ने धार्मिक विचारो का प्रचार करते हुए पशु चिकित्सा का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त किया, विदित रहे इस लोक देवता का मंदिर भरतपुर के नगला जहाज में है |
- मीणा जाति के लोग भुरिया बाबा, गौतमेश्वर की झूठी कसम नही खाते
- निर्गुण निराकर ईश्वर में विश्वास रखने वाले मल्लीनाथ के नाम पर ही बाड़मेर परगने का नाम मालानी पड़ा |
- हरिराम बाबा के गुरु का नाम भूरो बाबा था | गोगा मेंडी की बनावट मकबरे नुमा है |
- मेहावाल जाति के भक्त रिखिया कहलाते है |
- मल्लीनाथ का मेला तिलवाड़ा [बाड़मेर] में भरता है |
- कल्ला जी के गुरु का नाम भैरवनाथ था |
- चौबीस वाणियाँ ग्रन्थ बाबा रामदेव के जीवन से सम्बंधित है | ध्यान रहे लोक देवता रामदेव जी एक देवपुरुष थे जो कवि भी थे |
- रूपनाथ झरडा राजस्थान के ऐसे देवता है जिनको हिमाचल में बालक नाथ के रूप में पूजते है |
राजस्थान के लोक संत व सम्प्रदाय
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संत जाम्भोजी विश्नोई सम्प्रदाय के आराध्य है |
– जन्मस्थान : पीपासर [नागौर]
– मुकाम [बीकानेर] में गुरु जम्भेश्वर का सबसे बड़ा मेला भरता है |
– विश्नोई सम्प्रदाय में खेजड़ी पवित्र वृक्ष मन जाता है |
- विश्नोई सम्प्रदाय में हिरण को सर्वाधिक महत्व देते हुए इसकी रक्षा की जाती है |
- इस सम्प्रदाय में हरे पेड़ो की कटाई व पशु – हत्या पर रोक लगाई गई |
- गुरु जम्भेश्वर को पर्यावरण वैज्ञानिक सन्त व जांगल प्रदेश का सन्त कहा जाता है |
- गुरु जम्भेश्वर की माता हंसा देवी व पिता लोहर जी थे |
- मूल नाम : धनराज |
- विश्नोई सम्प्रदाय के प्रमुख ग्रन्थ : 1. जम्भ सागर 2. जम्भ संहिता 3. विश्नोई धर्म प्रकाश 4.जम्भ वाणी
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संत जसनाथ जी :- जसनाथी सम्प्रदाय के प्रवर्तक |
-निर्गुण निराकर ब्रह्मा की उपासना पर बल |
-पवित्र : मोर पंख, ऊन का धागा व जाल वृक्ष
-डाबला तालाब में तैरते हुए मिले |
-माता : रूपा दे; पिता : हम्मीर
-प्रमुख पीठ : कतरियासर [बीकानेर]
-सिध्द सम्प्रदाय में अंगिरो पर नृत्य किया जाता है |
-प्रमुख ग्रन्थ : 1. सिम्भूदडा 2. कोड़ा 3. सिध्द जी रो सिर लोको
उल्लेखनीय है की दिल्ली के सुलतान सिकन्दर लोदी संत जाम्भोजी व संत जसनाथ जी के समकालीन थे | इस समय बीकानेर के शासक राव लुणकरण थे |
सिकंदर लोदी ने सन्त जसनाथ जी को बीकानेर में भूमि प्रदान की थी |
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संत दादूदयाल जी : सन 1574 में सांभर में दादू पंथ की स्थापना की |
-जयपुर के निकट भैराणा की पहाडियों में जिस गुफा के सामने उनके शव को रखा गया, उसे आज ‘दादूखोल’ कहा जाता है|
-दादू पंथ में सत्संग स्थल को ‘अलख दरीबा’ कहा जाता है |
-प्रमुख ग्रन्थ : 1. दादू री वाणी 2. दादू रा दूहा 3. दादू हरडे वाणी 4. अंग वधू दादू
-दादू सम्प्रदाय की भाषा ‘ढूंढाडी’ है |
-दादू दयाल जी के उपदेशो का संकलन ‘काव्य बेलि’ व ‘अनभैवाणी’ के नाम से उनके शिष्यों ने किया था |
-दादू पंथ की प्रधान पीठ : नरैना [जयपुर]
-दादू दयाल जी ने 1585 में मुगल सम्राट अकबर से भेंट कर उनको अपने विचारो से प्रभावित किया | दादू दयाल की गुरु शिष्य परंपरा में 152 शिष्य हुए |
-दादू दयाल जी के उत्तराधिकारी उनके पुत्र गरीबदास जी थे |
-संत दादू दयाल जी के कुछ प्रमुख शिष्य :
1.गरीबदास जी [पुत्र] 2. संत रज्जब जी 3. सुन्दरदास जी 4.जन गोपाल जी 5. बखान जी 6.मंगलाराम जी 7. मिस्किन दास जी 8. संत दास जी इत्यादि
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संत भाव जी :- निष्कलंक सम्प्रदाय के प्रवर्तक
-उपनाम : कृष्ण का निष्कलंक, अवतार, वागड़ का धणी वागड क्षैत्र में भीलो के लिए लासडियाँ आन्दोलन चलाया |
-चौपडा : वाणियो का संकलन
-मुख्य पीठ : साबला गावँ [डूंगरपुर]
-सोम, माही व जाखम नदियों के संगम पर माघ पूर्णिमा को वेणेश्वर धाम मेला लगता है |
-खण्डित शिव लिंग की पूजा वेणेश्वर धाम में होती है |
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हरिदास जी :-
-मूल नाम : हरी सिंह सांखला
-उपनाम : राजस्थान के वाल्मीकि
-जन्मस्थान : कापडौद, डीडवाना [नागौर]
-सम्प्रदाय का नाम : निरंजनी
-अनुयायी : गृहस्थ व विरक्त
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धन्ना जी सन्त :-
-राजस्थान में भक्ति आन्दोलन के जनक
-जन्म : गावं धुवन जिला टोंक
-सामाजिक बुराईयो का विरोध किया
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भक्त शिरोमणि मीरा बाई :–
-सगुण भक्ति, दाम्पत्य भाव
-बचपन का नाम : पेमल [कसबू बाई]
-राव दूढा [दाढा – मेड़ता के ठाकुर]
-रतनसिंह [पिता – बाजोली के जागीरदारी]
-वीर राज कुंवर – माता
-जन्म स्थल : गावं कुडकी [पाली] , मेड़ता ठिकाना
-राणा भोजराज – पति [राणा सांगा का ज्येष्ठ पुत्र]
-बचपन के गुरु : गजाधर
-गुरु गजाधर को राणा ने मांडलपुर की जागीर दी |
-प्रमुख ग्रन्थ : 1. मीरा बाई की पदावली 2. गीत गोविन्द की टीका 3. राग गोविन्द 4.राग सोरठा 5. भक्त माला ग्रन्थ 6. नरसी जी रो मायरो 7. सत्य भामा रो रूसणो इत्यादि
-देवताओ कि पत्नी – कर्नल जेम्स टॉड द्वारा दिया नाम तुलसी जि कि सलाह पर मीरा बाई मेवाड़ छोडकर वृंदावन चली गई |
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गवरी बाई:-
-उपनाम :- वागड की मीरा, मंदिर – डूंगरपुर
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संत पीपा जी :-
-पिता : कडावा राव खींची , माता : लक्ष्मीवती
-मूल नाम : प्रताप सिंह खींची
-भक्ति धारा : निर्गुण
-राजस्थान में भक्ति आन्दोलन की अलख जगाने वाले प्रथम संत |
-फिरोज शाह तुगलक को पराजित किया |
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संत लालदास जी :-
-जन्मस्थल : धोली दूब [अलवर]
-गुरु : गद्दनाचिश्ती
-लाल दास जी :-
-जाति+धर्म : मेव [मुसलमान]
-इस सम्प्रदाय के सन्त भीख नही मांगते
-दीक्षा कैसे दी जाती है – काला मुंह कर गधे पर घुमाया जाता है व गले में जूतों की माला पहनाई जाती है |
-सभी अनुयायी वैष्णव धर्म का पालन करते है तथा निर्गुण भक्ति में विश्वास
-संत चरण दास जी [सगुण + निर्गुण]
-जन्म : डेहरा[अलवर]
-इनके अनुयायी हमेशा पीले वस्त्र धारण करते है | जयपुर के शासक सवाई प्रताप सिंह के समकालीन नादिरशाह के आक्रमण की भविष्वाणी की थी |
-प्रमुख ग्रन्थ : ब्रह्मा ज्ञान सागर, ब्रह्मा चरित्र, भक्ति सागर, ज्ञान स्वरोदय |
-शिष्याऐ : 1. दया बाई 2. सहजो बाई
-सहजो बाई – उपनाम : मत्स्य प्रदेश की मीरा राजस्थान की प्रथम साध्वी सन्त |
-सहजो बाई द्वारा रचित ग्रन्थ : ग्रन्थ सहजप्रकाश व सोलह तिथि |
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भक्त कवि दुर्लभ :-
-जन्म वर्ष : 1753, क्षैत्र: बागड़
-उपनाम : राजस्थान का नृसिंह
-कार्य क्षैत्र : डूंगरपुर व बांसवाडा
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सन्त रैदास [रविदास]
-गुरु : रामानन्द
-वाणी संकलन : रैदास की परची
-संत कबीर ने रैदास को संतो का सन्त कहा |
-विदित रहे अछुत जाती के कथित सन्त रैदास मीरा बाई के गुरु थे |
-इन्होने तात्कालिक समय में समाज में व्याप्त कुरीतियों / बुराइयों यथा जाति-पांति व ब्राह्म आडम्बरो का सख्त विरोध किया |
-सन्त रैदास की वाणियाँ सहिष्णुता, मानवता, आत्मसमर्पण, भक्ति इत्यादि गुणों से ओत प्रोत होती थी |
-सन्त रैदास जी की छतरी कुम्भश्याम मंदिर चित्तौडगढ के एक कोने में निर्मित है |
-पाशुपत सम्प्रदाय के संस्थापक : लकुलीश
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