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सर्वोच्च न्यायालय | SUPREME COURT

उच्चतम न्यायालय

  • भारतीय संविधान के भाग V में अनुच्छेद 124-147 तक उच्चतम न्यायालय के गठन का प्रावधान है |
  • न्यायालय की यह एकल व्यवस्था भारत सरकार अधिनियम 1935 से ली गई है |
  • स्वतंत्रता के पश्चात् संघीय न्यायालय और प्रिवी परिषद् को सर्वोच्च न्यायालय से प्रतिस्थापित किया गया| इस तरह भारत के उच्चतम न्यायालय का उद्घाटन 26 जनवरी 1950 को किया गया था |
  • 1950 में संविधान में एक मुख्य न्यायाधीश और 7 अन्य न्यायाधीशो की कल्पना की गई थी |

वर्तमान में संसद द्वारा उच्चतम न्यायालय की कुल संख्या 34 कर दिया गया है | (मुख्य न्यायाधीश तथा 33 अन्य न्यायाधीश) भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति :- वरिष्ठ न्यायाधीश को बतौर मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया जाता था (1950-1973)                            बाद में इस व्यवस्था को खत्म कर दिया गया द्वितीय न्यायाधीश मामले (1993) में यह व्यवस्था दी गई की उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश को ही भारत का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया जाना चाहिए | न्यायाधीश की अर्हताए:-  (i) उसे भारत का नागरिक होना चाहिए (ii) उसे किसी उच्च न्यायालय में कम से कम 5 साल के लिये या एक से अधिक उच्च न्यायालयों का न्यायाधीश  रहा हो (iii) उसे उच्च न्यायालय या विभिन्न न्यायालयों में मिलाकर 10 वर्ष तक वकील होना चाहिए (iv) उसे राष्ट्रपति के मत में सम्मानित न्यायवादी होना चाहिए (v) न्यूनतम आयु का उल्लेख संविधान में नहीं है | वेतन एवं भत्ते:- उच्चतम न्यायालय के वेतन, भत्ते, विशेषाधिकार, अवकाश, पेंशन का निर्धारण समय-समय पर संसद द्वारा किया जाता है |

  • इन्हें वित्तीय आपात की स्थिति के अलावा कम नहीं किया जा सकता |

कार्यकाल :- इसके लिये तीन उपबंध किये गए है |

  • वह 65 वर्ष की आयु तक इस पद पर बना रह सकता है |
  • वह राष्ट्रपति को लिखित त्यागपत्र दे सकता है |
  • संसद की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा उसे पद से हटाया जा सकता है |

न्यायाधीश को हटाना :-  आधार –अक्षमता या सिद्ध कदाचार

  • उसे राष्ट्रपति के आदेश द्वारा उसके पद से हटाया जा सकता है |
  • राष्ट्रपति ऐसा तभी कर सकता है, जब इस प्रकार हटाये जाने हेतु संसद द्वारा उसी सत्र में ऐसा संबोधन किया गया हो |
  • न्यायाधीश जांच अधिनियम (1968) उच्चतम न्यायालय के न्यायधीशो को हटाने के संबध में महाभियोग की प्रक्रिया का उपबंध करता है |
  • 100 सदस्य (लोकसभा) या 50 सदस्य (राज्यसभा) द्वारा हस्ताक्षर करने के बाद निष्कासन प्रस्ताव अध्यक्ष / सभापति को दिया जाना चाहिए |
  • अगर अध्यक्ष / सभापति इस प्रस्ताव को शामिल कर लेते है तो इसकी जांच के लिये तीन सदस्यीय समिति का गठन किया जाएगा

         समिति – मुख्य न्यायाधीश या उच्चतम न्यायालय का कोई न्यायाधीश  +  किसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश + प्रतिष्ठित न्यायवादी

  • समिति अगर दोषी पाती है तो सदन इस प्रस्ताव पर आगे विचार करती है |
  • विशेष बहुमत से दोनों सदनों में प्रस्ताव पारित कर राष्ट्रपति को भेजा जाता है |
  • अंत में राष्ट्रपति द्वारा न्यायाधीश को हटाने का आदेश जारी कर दिया जाता है |
  • उच्चतम न्यायालय के किसी भी न्यायाधीश पर अभी तक महाभियोग नहीं लगाया गया है |

उच्चतम न्यायालय का स्थान (अनुच्छेद 130):-

  • संविधान के अनुसार उच्चतम न्यायालय का स्थान दिल्ली निर्धारित
  • मुख्य न्यायाधीश को यह अधिकार है की उच्चतम न्यायालय का स्थान कही ओर निर्धारित कर सकता है, परन्तु इसके लिये राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति जरूरी होती है |

उच्चतम न्यायालय की शक्तियां और क्षेत्राधिकार :- (i) मूल क्षेत्राधिकार (अनु. 131) :- ऐसे मामले जिनके सुनवाई का अधिकार सिर्फ उच्चतम न्यायालय के पास ही है जो निम्न है :-

  • राज्य व केंद्र के मध्य विवाद
  • दो या अधिक राज्यों के बीच
  • केंद्र और एक से अधिक राज्यों का दूसरी तरफ होना

 (ii) न्यायाधीश क्षेत्राधिकार (अनु.32) :- उच्चतम न्यायालय केवल मूल अधिकारों के क्रियान्वयन के संबंध में ही न्यायाधीश जारी कर सकता है | (क़ानूनी अधिकारों के लिये नही) इस तरह न्यायाधीश क्षेत्राधिकार के मसले पर उच्च न्यायालय का क्षेत्र ज्यादा विस्तृत है | (iii) अपीलीय क्षेत्राधिकार :- संवैधानिक मामले जिसमे संविधान की व्याख्या की जरूरत हो |

  • दीवानी मामले
  • अपराधिक मामले

(iv) सलाहकार क्षेत्राधिकार  (अनु.143) :- राष्ट्रपति को निम्न दो मामलो में उच्चतम न्यायालय से राय लेने का अधिकार है :-         (i) किसी मामले पर विधिक प्रश्न उठने पर उच्चतम न्यायालय अपनामत दे भी सकता है नही भी         (ii) किसी पूर्व संवैधानिक संधि, समझौते, संविधान आदि मामलो पर विवाद उत्पन्न होने पर मत देना अनिवार्य है | नोट:- राष्ट्रपति इस सलाह को मानने के लिये बाध्य नही होता है | कुछ महत्वपूर्ण तथ्य :-

  1. उच्चतम न्यायालय की कार्यवाही व फैसले सार्वकालिक अभिलेख / साक्ष्य के रूप में रखे जाएगे |
  2. उच्चतम न्यायालय के पास न्यायालय की अवमानना पर दंडित करने का अधिकार है |
  3. उच्चतम न्यायालय अपने स्वयं के फैसले या आदेशो की समीक्षा कर सकता है |
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